Tuesday, April 24, 2018

सूनी सांझ



बाट जोहते
थक गई अंखिया
सूखी पूरी देह

दिखी न कोई
आस की किरण
बढ़ा विरह उद्दवेग

कहकर गया कोई
आने को
भूला अपना देश

दिल मे उठी
हुक अजब सी
जीवन हुआ क्लेश

बरखा सावन
एक हुए सब
नैनन झरा स्नेह

सूना पथ है
सूना जीवन
सूनी आंखे

सूनी सांझ के
मेरे साथी.......
आ जाओ अब
खिंची है दिल पे
यादों की लंबी गहरी रेख!!

जिस्म का रूह से रिश्ता

सब छूट जाता है
वक़्त के साथ
जिंदगी की टीसन
फिर भी
सालती जाती

याद रहते है
वो लम्हे
जो जिये थे कभी
अपने लिए
तुम्हारे लिए
एक दूजे के लिए

वक़्त का काम है
दूरियां करना,
बिछड़ा देना
रूह को रूह से
दिल है कि
फिर भी
अलग नही
हो पाते

इसी का नाम है
मोहब्बत
जिस्म से
रूह का रिश्ता
जिसे लोग
कभी चाह
कर भी
अलग नही
कर पाते

उधड़े हुए
आसमान पे
टांके टिकेंगे
कब तलक
गम की एक आंधी
उजाड़ देगी
पूरा का पूरा
आसमान

मरहम

अपनी कलम से
कुछ गम
लिख के हम
दिल को मरहम देते है
लोग है .....
कि हमें
न जाने क्या क्या
समझ लेते है.....
कहूँ क्या किस्सा
गमे दिल का ए दोस्त
अब तो गम के
गुलशन में भी हम
कुछ देर खुश रह लेते है।।।

पुराने जर्जर रिश्ते दफना दिए जाते है

हर नए रिश्ते के साथ
छूटता जाता है
पुराना रिश्ता
नए रिश्ते
आगे बढ़ते जाते है
पुराने दम
तोड़ते जाते है
मिट जाते है
डायरी से
पुराने फ़ोन नंबर
नए जगमगाते है
जो रिश्ते
काम के होते है
वो रह जाते है
बाकी
वक़्त की मिट्टी में
दफना दिए जाते है!!!

तुम आना ख्वाब नही

अब नही आते है
खवाब
अब नही आती है
नींद
रात लंबी आती है
तुम्हारी याद लेकर
रात भर
जगाने के लिए
अबकी बार ........

तुम आना
तुम्हारे ख्वाब नही!!

पुरुष विहीन धरती


क्या करे स्त्री
पुरुष भरोसा छोड़
उसे उड़ना ही होगा
जब नही बची है
धरती पे जगह
उसके लिए
उसे आकाश में
विचरण करना होगा
आकाश में
नया घर
बनाना होगा

जहां पुरुष प्रवेश
पूर्णतः वर्जित होगा
मालकिन भी स्त्रियां
दासी भी स्त्रियां
राजा भी, रानी भी
बाँदी भी स्त्रियां

हर तरफ़ होगा
सिर्फ और सिर्फ
स्त्रीयों का हुजूम
अपनी तरह से
जीने का हक़
अपने कानून बनाने का
हक़
अपने मन की रानी
होगी वो स्त्रियां

शायद
किसी कानून की
आवश्यकता ही न पड़े
कानून तो
स्त्री पुरुष को
सभ्य
बनाने के लिए होते है
असभ्य
प्रायः पुरुष हुआ करते है
स्त्रियां नही!!!!@अपर्णा खरे

बुढ़िया तेरा जीना सच


मरना भी सहज कहाँ
लोग मरने भी नही देते
कहते है
मरोगी तो क्रियाकर्म में
बहुत पैसे लगेंगे
सब रिश्तेदारों को बुलाना पड़ेगा
कोई चाय मांगेगा
कोई दूध
इतना पैसा कहां से आएगा
चुपचाप पड़ी रहो
यू ही खखारती
कम से कम
कुछ मांगती तो नही
रूखा सूखा खाकर पड़ी रहती हो
झांकती आंखों से तुम देख पा रहे हो न ये मजबूरी
सुन रहे हो न तुम!!@@@@अपर्णा खरे

प्रेम का न दिखना

सच कहा
प्रेम ऐसा हो
जो रगों में बहे
आंखों से दिखे
होंठो से चुए
प्रेम शब्द
लबों पे न आये
फिर भी प्रस्फुटित हो
हमारे हाव भाव से
हमारी क्रिया शैली से
हम हवा में उड़े
लेकिन हमारा उड़ान
किसी को पता न चले
देह की देहरी से
प्रेम झांके
बाहर न आये
बाहर आते ही
प्रेम का हास्यास्पद बनना
लाजिमी हो जाएगा!!!!