Tuesday, July 11, 2017

प्रेमहीन स्त्री

स्वार्थ की पराकाष्ठा 
हो तुम

जिंदगी की जंगल में
विष की बेल हो तुम
जिस से लिपटी
उसे अपना पूरा 
जहर दिया
न जीने दिया 
न मरने दिया
धरती पे जो न 
सुख दे सके 
किसी को
ऐसी जंगली बेल हो तुम

क्या करूँ 
तुम्हारे गुणों की चर्चा
तुमने हर किसी को
अपने तीखे 
शब्द बाण
से परखा
न लेने दी सुख की सांस उसे
जिसने तुम्हे हरा भरा किया
कृतग्यहीन, भाव हीन
प्रेमहीन प्रणय मेल हो तुम

क्या कहूं तुम्हे
शब्द कम पड़ जाए
ऐसी दुनिया की जेल हो तुम