Tuesday, November 1, 2016

मर मर जीते रहे
अजीब सी जिंदगी
जीते रहे
चाहा जो पाना
उसे ईश्वर ने 
न माना

मनमानी करती रही
किस्मत अपनी चाले
चलती रही
मैं वक़्त का प्यादा बन
बस घर बदलता रहा
अजीब सी जिंदगी
जीता रहा
मरता रहा 
जीता रहा

कठपुतली हूँ शायद
जो वक़्त के जोर से
चलता हूँ
सोचता कुछ हूँ
कुछ और ही करता हूँ
हर वक़्त सवाल ढेरो ढेर
अपने से करता रहा
वक़्त हर बार 
मुझे छलता रहा
अजीब सी जिंदगी
जीता रहा
मरता रहा 

किससे करूँ शिकायत, किसका इंतज़ार करूँ


तुम्हारे जाने से 
थम गई है 
मेरी दुनिया
अब सब कुछ मुझे
रुका रुका सा
लगता है
साँसे जैसे अटकी हो
जिस्म में मेरे
बस कुछ यूँ
महसूस होता है
बात बात पे 
रोने का 
जी करता हूं
डबडबाई रहती है 
मेरी आँखे
आँखों में 
तुमको भर लेने का 
जी करता है
सोचती हूँ 
किस से करूँ शिकायत 
जो मेरे साथ 
बुरा चलता है
तुम थे तो जिंदगी 
कितनी आसान थी
अब तो बस हर वक़्त
मरने को जी करता है
काश तुम फिर से 
लौट आते
सब कुछ 
पहले जैसा हो जाता
खुशनुमा होती 
अपनी भी जिंदगी
तुम संग जीने का 
मज़ा आता