Wednesday, September 21, 2016


ख्यालों की 
अंगीठी पे
खदबदाते विचार
बटलोई से 
बाहर आने को आतुर
पानी का छीटा 
मार कर 
बार बार 
भीतर भेजती मैं

इसी उहापोह में 
बीतती जिंदगी
कभी जान ही 
न पाई
कहाँ है 
मन की ख़ुशी
भागती रही 
बावरी सी
कभी इधर
कभी उधर

आज समझ में आया
जब समय ही 
न रहा हाथ में
रेत की तरह 
फिसलता जा मिला
आकाश में

लेकिन 
अब पछताए 
क्या होत
जब चिड़िया न खेत

सूना आकाश
विलीन सूरज
घर जा चुके पंछी
खाली खाली सा मन

सब एक से ही 
दीख पड़ते है
तुम ही कहो
कहाँ खोजू तुम्हे
अपने सिवा

खुद के सिवा
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उदास आँखों से
रात की
वीरानी न गई

तुम आये
नहीं लौटकर
मेरी परेशानी
न गई

ताकती रहती है
नजरे हर वक़्त
दरवाजें की ओर

आँखों से नमी,
दिल से
तुम्हारी
कमी न गई

मौत अब
आती नहीं
जिंदगी जी
जाती नहीं

पशोपेश में हूँ
क्या करूँ
वक़्त से मेरी
अब और
सुनी जाती नहीं

यहाँ तो उदासी का
ये आलम है
हटने का
नाम ही नहीं लेती
हर सुबह आ जाती है
बेसबब
अपनी याद दिलाने
दिल को तड़पाने
आँखों को भिगाने।।।।

एक बार तो कह दो

मेरा गुनाह क्या है
मुझे सताने की
वजह क्या है
लफ्ज़ थक गये है
पुकार कर तुमको
यूँ बेवजह दूर जाने की
वजह क्या है????????₹?

तुम्हारे होने का सबूत


कहाँ हो तुम
दो अपने 
होने का सबूत
कहीं तो 
नज़र आओ

लगाओ 
वही से सदा
जहाँ मौजूद हो
या दो 
फिर से आवाज़
एक बार तो 
मेरी खातिर
लौट आओ

दरो दीवार
खामोश है
मौसम भी है 
रुका रुका सा
टकटकी बांधे 
इंतज़ार में
खड़ी हूँ मैं

आओ तो जरा 
चैन लू
पलके झपकाउ

tumhara sath mujhe accha lagta hai


वो लम्हे
वो पल
आँखों से जाते ही नहीं
जब तुम साथ थे

अब जब तुम
पास नहीं तो
पलके मूँद कर ही
आराम आता है

तुम्हारा साथ तब भी
अच्छा लगता था
अब भी तुम्हारा साथ
मुझे भाता है।।।।।।