Tuesday, July 5, 2016

मैं औरत हूँ


मुझे अबला 
मत समझो
मैं औरत हूँ
जो करती है
तुम्हारी बातों का 
प्रतिकार
देखती है 
तुम्हारे विकार
नहीं मिलाती तुम्हारी
बेकार की बातों में 
हाँ में हाँ
नहीं सहती तुम्हारे
लात घूसे और कोड़े
मुझे पता चल गई है 
अपनी हदे
नहीं रहना अब 
तुम्हारे सामने
यु ही मिमियाते हुए पड़े
खुला आकाश मुझे भी
दिखाई देने लगा है
खुली हवाओं से 
मुझे भी आने लगी है
अपने पसीने की सुगंध
चाहे मैं पढ़ी लिखी हूँ या अनपढ़
शान से अपना गुजरा कर लुंगी
नहीं फैलाउंगी 
अपना हाथ किसी के आगे
हंस के मेहनत करुँगी
नहीं करुँगी तुम्हारी 
बेजा बातों के लिए समझौता
अब तुम्हारी एक नहीं सुनूंगी
सुना तुमने
मैं औरत हूँ
अब नहीं झुकूँगी
न ही तुम्हारे कहने से रुकूँगी
मुझे छूना है आकाश
बनानी है अपनी पहचान
देना है तुम्हारी हर बात का 
मुहतोड़ जवाब
ताकि तुम भी समझ जाओ
अब मैं बेबस
कमजोर
लाचार नहीं
तुम्हारी मोहताज़ नहीं