Wednesday, June 15, 2016

बूढा नायक

शरीर के तल पे 
बूढ़े हुए तो क्या

बूढा नायक 
थक नहीं सकता
जीवन के इतने बसंत 
जो साथ बिताये
उनका क्या

हर बार मौसम 
एक से 
नहीं हुआ करते
एक सी रातें
एक सी बरसाते

कहाँ मुमकिन है दोस्त

यहाँ तो वक़्त के साथ
टेलीफोन डायरी के नंबर भी 
बदल जाया करते है

फिर फूलों के रंगो से 
उम्मीद कैसी
चिड़िया का घोसला 
आज खाली है
कल फिर आएंगे 
नन्हे बच्चे
तुम निराश मत होना

फिर आएगा बसंत
तुम हताश मत होना

Tuesday, June 14, 2016

जाहिल, गवार औरत

औरत 
जनम देती है 
प्यार से
अपनी औलाद को
सीने से 
छिपा कर रखती है

पालती है 
अपने हाथो से

पैरों पे 
खड़ा रखती है
सिखाती  है 
जूझना दुनिया से

पढ़ा लिखा कर 
काबिल बनाती है

जब नहीं होता कोई 
दुनिया में 
बढ़ाने वाला

हिम्मत देकर 
मजबूत करती है

एक दिन 
जब हो जाते है 
कंधे मजबूत तुम्हारे

वही औरत तुम्हे 
जाहिल, 
गवार 
बेवकूफ 
नजर आती है

क्या तुम्हे पैदा करना 
उसकी 
बेवकूफी है
या 
कड़ी मेहनत से 
तुम्हे 
अच्छा इंसान बनाना 

उसकी जाहिलियत

लूटा देती है 
सच्चे मन से 
अपना सर्वस्व
यही है उसका 
गवारपन

बोलो न 
क्यों है औरत
इतनी जाहिल
कम अकल
बेवकूफ
गवार

Monday, June 13, 2016

ओह तू स्त्री है क्या

स्त्री की कलम से निकला 
हर शब्द 
सच्चा नहीं होता
उसमे होती है मिलावट
वो नहीं लिख सकती 
खरा सच
जो उसपे गुजरी
या फिर 
जो उसने भोगा 
स्त्री होकर
वो अपनी आँखों का देखा भी
सच्ची सच्ची नहीं 
कर सकती बयान
क्यों की 
सच्चा लिखा 
पचा पाना भी
पुरुष समाज के लिए 
मुश्किल 
अनगिनत आँखे 
जो उसे देखती है पीछे से
नापती है 
उसके बदन का लोच
स्त्री अपनी 
पीठ पे लगी 
आँखों से देख लेती है
अपने बदन की
गोलाई का व्याकरण 
उसे रिश्तेदार सीखा देते है
छूते है इतनी सफाई से 
उसका तन
कि 
वो देखकर भी 
प्रतिरोध नहीं कर पाती 
बता दे अगर 
भोगा हुआ
सब पति को तो
बदचलन बन 
पति का
कोप भाजन हो जाती है
वाह री स्त्री
तू तो बिना गलती के भी
सजा पाती है