Tuesday, August 11, 2015

सपन सलोना


सुन्दर सा एक 
सपना सलोना
आँखों में पलता देखा है
लेता है आकार 
वो धीरे से
समय के साथ 
साकार होते देखा है
सपने की 
एक सोच ही 
होंठो पे 
मुस्कान ले आती है
जाने 
पूरा होने की 
उम्मीद ही
इंसा को 
खुश कर जाती है
सपनो सपनो में 
कटती जाती है उम्र
मन फिर भी 
थम कर चलता है
कैसा है ये 
खवाब सजीला
पल पल बढ़ता रहता है
ख़ुशी खवाब की 
छिपाये न छिपती
जैसे जैसे बढ़ता है
आँखों में 
एक खवाब 
सजीला 
पल पल 
सजते देखा है

एक सपना  जो काश .. ...एक बार ही सही......... सच हो जाता



दिल करता है 
ढेर सारी 
किताबे लेकर 
कहीं पहाड़ो पे 
चली जाऊ 
जब मन करे 
किताबे पढ़ु 
जब मन करे 
सैर पर निकल जाऊ 
पेड़ पौधों से करू 
खूब सी बातें
फूलो से खेलु 
उनके गहने बनाऊ
नीली चुनरिया 
जो फैली है 
आसमान तक 
उसका ओढु  आँचल
धरती का लेह्गा बनाऊ
पढ़ती रहू 
जब तक जी करे 
रात में
फिर जब नींद आये तो चंदा की  रजाई  में 
छिप सो जाऊ
न हो दिन का ख्याल
न हो रात की बात
क्योंकि
दिन भी अपना
रातें भी अपनी
चलो थोड़े दिन तो कहीं
अपनी मर्जी से बिताऊँ
दुनिया की टिक टिक से दूर
किताबो में 
कहीं खो जाऊ
काश 
सच हो जाता 
ये खवाब हमारा
गुम हो जाना
तुम्हारा 
हमें न ढून्ढ पाना