Saturday, September 27, 2014

Dedicate to my friend Vijju

चलो कुछ लिखते हैं..
कहना था उसका..जो मेरी प्यारी सी दोस्त थी..
मैने कहा शुरूवात तुम करो
मैं तो सिर्फ़ तुम्हारे पीछे चलूंगी
बोली क्यूँ...मैने आकाश मे देखते हुए कहा बस यू ही....
ना जाने क्या था उसमे ..बस उसके सम्मोहन मे
खुद को बँधा हुआ पाती थी..
बहुत मासूम थी वो...
दुनिया से अलहदा..या यू कह लो
लाग लपेट से अलग..
अगर किसी को चाहती तो जान देने की हद तक
उसकी मासूमियत ही उसका गहना थी..
बाहर से तो वो सादगी की मूरत...
जैसे कोई देवी....जो बिना साजो शृंगार के
मंदिर मे स्थापित कर दी गई हो....
वो कहती...मैं जहाँ से छोड़ती हूँ..
तुम वहाँ से पकड़ कैसे लेती हो..
अब कौन उसे समझता..की वो और मैं अलग नही थे
भले ही एक शहर..एक माँ-बाप या एक सा
परिवेश नही मिला था हमे
फिर भी सब कुछ मिलता जुलता सा था...
वो गमो मे डूबती तो मैं उसका साहिल बन जाती..
और जब मेरा मन दुखी होता तो
वो ना जाने कहाँ से अंबे माँ बन कर आ जाती..
कहते हैं दुनिया मे पाँच लोग एक जैसे शक्ल सूरत
हाव भाव वाले होते हैं...लेकिन हम तो एक ही थे..
पवित्र भावना से भरा मन...बच्चों सी भोली आवाज़
जैसे मिशरी की डली...कुछ ऐसा महसूस होता था उसके साथ
क्यूँ देता हैं ईश्वर..हमे इतने सुंदर उपहार
शायद हमारे पिछले जनम की कमाई थी..
जो वो मासूम मेरे जीवन मे आई थी

Tuesday, September 23, 2014

वो यहीं है "


कली से फूल बन वो
डाल पे मुस्का रही..
दे रही हैं नेह निमंत्रण
पास अपने बुला रही..
सकुचाना भूली वो
आतुर हैं मिलन को..
मीत को वो
पास अपने हैं बुला रही
थोडा सा हैं जीवन उसका..
कल उसे झर जाना हैं..
देकर खुश्बू सबको अपनी
फिर मिट्टी मे मिल जाना हैं
यही हैं नियती उसकी..
चार दिन जीवन मिला
हंस लो, गा लो..
नही रहना कुछ भी यहा..
रह जाएँगी यादे उसकी...
खिलखिलाना, मुस्कुराना
याद करना
मिलेगी तुमको फिर से
अगले जनम मे...
यही तक था जीवन उसका..
रहेगी वो यहीं....
कहेगी सब कुछ तुमसे ...
मिलन मे...याद जो आया उसे तो...
तुम भी उसे ना बिसराना...
वो यहीं हैं
वो यहीं हैं..