Thursday, September 11, 2014

एक डायरी ......उन पलों की दस्तक...


थाम कर हाथों मे हाथ..जिन्हे आँखो ने क़ैद किया 
ये डायरी नही ..खजाना हैं बीते पलों का..जो गुज़रे थे साथ साथ...
लफ़जो ने ज़ुबान दी...चल कर बेधड़क गये हमारे पास.... 
सच यादें ना होती तो ....ये जीवन भी ना होता  
अगर होता भी तो कितना सूना सा...जैसे सुर बिना संगीत............ 
जैसे साजन बिना मीत..सब कितना अधूरा अधूरा सा होता 
नही होते जिंदगी मे रंग..जो बिखेरते छटा..चहु ओर 
हाय मैं भी क्या लेकर बैठ गई..बिना रंगो की बेजान सी दुनिया 
जब मुझे नही पसंद ..तो आपको क्या पसंद आएगी..हैं ना..चलो रंगों की बात करे 
एक बार फिर से वही गुजरा हुआ पल याद करे.... 
यादों की उड़ान दे...शब्दों को छलाँग दे 
फिर से वही पहुच जाए...जहाँ से छोड़ आए थे सपने...अपने अपने.. 

Monday, September 8, 2014

समय की रेत से जाते नहीं निशान

कुछ शामे उदास क्यूँ होती हैं..
एक दिन उसने मुझसे पूछा..
सुनकर मैं हल्का सा मुस्कुराया
मैने कहा क्या हुआ हैं तुम्हे
क्यूँ  खोई  सी  रहती  हो
उसने हौले से सर हिलाया
बोली कुछ नही, बस यू ही
उसकी कुछ नही कहने मे भी
मानो  सब कुछ छिपा हुआ था
शायद वो सब कहना चाह रही थी
फिर भी खुद को छिपा रहा थी
यह  उसकी हमेशा की आदत थी
जब भी परेशान होती थी
उसे मेरी ही याद आती थी..
उसे पता था..उसके हर सवाल का जवाब
मैं ही दे सकता हूँ
बचपन से ही मैं उसका टीचर...गाइड
या यू कहे.... सही  राह दिखाने वाला मैं ही था
उसे स्कूल मे कोई परेशान करता हो..या विज्ञानं के आड़े तिरछे चित्र
हेर्बरियम उसका सब काम मैं ही किया  करता   था  
कई बार तो मुझे उसकी सुरक्षा मे
उसके स्कूल तक भी जाना पड़ता था..उसका सुरक्षा गार्ड बनकर
लेकिन मैं जानता था  वो मेरे सिवा
किसी  पर भी पूरा भरोसा नही कर पति हैं
सो मैं हमेशा उसकी हर छोटी बड़ी समस्या
झट से सुलझा दिया करता था
वो मुझे अपना ट्रबल शूटर कहा करती थी
पता नहीं कैसे देखते  देखते  दिन हवा हो गए
सब कुछ बदल गया.....
लेकिन अब भी वो उतनी ही बड़ी है
नहीं बदली वो
नहीं बदला मैं     बस समय  फिसल गया
लेकिन
निशान अब भी मौजूद हैं