Tuesday, April 22, 2014

चाँद की मजबूरी..



चाँद की मजबूरी..
घटते बढ़ते रहना..
बना देता हैं सबसे दूरी
क्या करे बेचारा
किस्मत का मारा हैं...
लेकिन आज भी ..
सबका राज दुलारा हैं..
करते हैं लोग इंतेज़ार..
चाँद के आने का.....
खाते हैं कसमे चाँद के सामने..
हमेशा साथ निभाने की...
चाँद हैं तब भी..
अपनी मजबूरी पे
मुस्कुरा के रह जाता हैं..
जनता हैं कल का दिन
कैसा होगा..उसके लिए
बस शर्मिंदा हो रह जाता हैं..
चाँद तुम मत होना शर्मिंदा..
हर दिन बदलना हैं तुम्हारी
खूबसूरत अदा...
मुझे बहुत भाती हैं....
तेरी उपस्थिति ही....चहु ओर
खुशिया ले आती हैं..