Wednesday, February 5, 2014

तेरे सामने बिखरना मुझे अच्छा लगा..

प्यार की मैने अजब की अनुभूति..
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एक सा टेंप्रेचर नही रहता कभी
जब पिघलना होता हैं तो बर्फ सी जम जाती हूँ..
जब जमना होता हैं तो 

एक हल्के से एहसास से..पिघल जाती हूँ..

ये तूने क्या किया
मेरा हर एहसास बहा दिया
अब कैसे जी पओगि..
खत के बदले किसे ..आँखो से लगओगि

तेरा टूट कर मुझे चाहना
मुझे बहुत अच्छा लगा..
हर वक़्त आँखो मे मुझे समेटना अच्छा लगा..
तू समेट ले मुझको अपनी आँखो मे...
तेरे सामने बिखरना मुझे अच्छा लगा..

मैं कोई परी या अप्सरा नही..
उतर के आई हूँ तेरे लिए..तेरी जैसी ही हूँ..
तूने जो उठाया मुझे प्यार से तो..मैं धूल
मोती सी बन गई..सज़ा लिया तूने उंगली मे तो..
तेरा प्यार बन गई....

उफ्फ..पागला था ना वो..
समझ नही पाया तेरी बातों को..

तभी कहु..आज महका हुआ सा आलम क्यूँ हैं..
हर तरफ इतनी  सुगंध क्यूँ हैं..
शायद प्यार भरे मौसम ने ली हैं अंगड़ाई..
धरती पे चारो ओर बहार हैं खिल आई..

(मुझे भी मिलना हैं बसंत से एक बार फिर से.)

पागलपन नही प्यार हैं ये..दिल से दिल की राह हैं ये



Tuesday, February 4, 2014

देखो चारो ओर बसंत आया..



वो तेरा अपनापन याद आता हैं..  
जब तू कहता हैं मुझे अपना..  
मुझे अपने पे गरूर हो आता हैं..  
 
जीवन की इस कठिन डगर मे  
प्यार करना भी मुश्किल हैं  
और  
निभाना भी मुश्किल,  
जब कोई प्यार निभाता हैं  
तभी वो अपनो से प्यार पाता भी हैं..  
 
तूने मेरा नाम मिटा डाला.. 
खुद को आज़ाद कर डाला  
लेकिन....लेकिन....लेकिन... 
आज़ा होकर बताना... 
कितने सुकून मे हो तुम?????  
 
मेरी मान ..मत खोल दिल के हिस्से.. 
आम हो जाएँगे तेरे प्यार के किस्से  
 
तू नही तो तेरी याद हैं.. कसम से क्या बात हैं.... जा एक बार तू...... फिर हसीन रात हैं.. 
 
तेरे मेघदूत ने कमाल कर डाला...  
हर प्यासी डाली को... 
रस से भर डाला..  
खिला दिए फूल सारे जग के 
गुम हुई उदासी दिल की..  
देखो चारो ओर बसंत आया..  
 
तुम भी क्या क्या कहते और करते हो...  
अपनी अमानत को... 
गंगा मे परवान करते हो..  
लग जाएगी आग सपनो मे.. 
जब ये पानी मे जाएँगे

एक स्त्री से दूसरी स्त्री



जिस दिन एक स्त्री का दर्द 
दूसरी स्त्री समझ जाएगी..  
टूट जाएँगी सारी ग़लत परंपराए..  
पुरुषो की एक नही चल पाएगी..  
जो चलाता हैं हुकुम.. 
उसकी बेचारगी पे.. 
खुद बेचारा हो जाएगा.. 
नही सहेगी वो अपमान..  
अपने सामने दूसरी स्त्री का..  
तलवार उठाकर जुट जाएगी  
ख़तम हो जाएँगे गंधाते ये सारे  
अमर्यादित रिश्ते...  
जब स्त्री अपने पे जाएँगी 
 एक घर मे दो स्त्री  
तब सवाल ही नही होगा  
नही रहेगी एक कमरे के बाहर..
 एक कमरे के भीतर  
एक से ही निभाना होगा अपना धर्म..  
संभल जा पुरुष... 
तेरी चतुराई काम नही आएगी..  
जाग जाएगी जब स्त्री...  
तोड़ सारे बंधन... 
जब वो सामने जाएगी  
करेगी वो रक्षा  
अपने संबंधो की .. 
एक स्त्री से दूसरी स्त्री  
कभी ना टकराएगी..