Thursday, January 30, 2014

रोशनी

रोशनी सारे जग मे फैलाए
चलो कुछ नया कर दिखाए
रहे ना अंधेरा किसी भी घर मे..
सारा तम मिटाए...
आओ एक बार फिर से 
नया प्रयास कर जाए




मीलों दूर हो तुम .मुझसे .

पीछे से टिकाया जो मैने
तुम्हारी पीठ पे अपना सर...
सुकून सा मुझे आया ..
तुम्हे भी लगा अपनापन..
महसूस कर सकते थे
अब तुम मेरे दिल की हर बात..
जो नही कही थी तुमसे मैने अब तक..
सहला कर मेरे बालों को...
tumne भी दे दी थी मुझे हामी..
जैसे समझ गये हो तुम मेरा अनकहा..झट से..
शायद....यही अनकहा....
आज हमे काम आ रहा हैं
मीलों दूर हो तुम .मुझसे .
फिर भी तुम्हारा  एहसास मुझे महका  रहा हैं..

आज उसे भूखा मरना पड़ा..

उसके किस्से असली थे..
उसने जिया था ये सब कुछ.
समय बदला..लोग बदले..
सब कुछ बदलता गया..
खो गई विरासते..
रानी, रजवाड़े..ख़ान पान किमाम सब
और आज उसे भूखा मरना पड़ा..

हर जगह हूँ मैं....

खोजता हैं आज भी तू मुझे जहाँ तहाँ..
नदी किनारे...उँची मीनारो..से झाँकते हुए
मेले की भीड़ मे...या सड़क पे चलते हुए..
हाथो मे हाथ लिए..हर जगह हूँ मैं....
अपनी महक के साथ...जो अब भी वहीं हैं...तुम्हारे आस पास

आ जाओ फिर गाव मे..

आ जाओ फिर गाव मे..खाओ प्यार से खाना
माँ ने पकाया हैं आज फिर से तुम्हारे लिए
बैगन का भर्ता..बटुए की दाल और कंडे की रोटी..
साथ मे झलेगी पंखा अपने हाथ से...देगी ढेरो आशीर्वाद