Saturday, January 4, 2014

उम्र की धूप


ये  तुमसे ही नही....
ना जाने कितने लोगो से
नही पूछा गया...कभी
या
ज़रूरत ही नही समझी..कभी...
एक टीचर के दिल मे भी
धड़कता होगा एक नन्हा सा दिल..
जो कभी बच्चो सा भी बन जाता होगा..
या फिर कभी मासूम लड़की सा...
जो चाहता होगा किसी का 

"लव एट  फर्स्ट साइड"
लेकिन जो लपेट रखा था आवरण...
खुद पे दुनिया के लिए...

सब उसे ही सच सोच बैठे...
मान लिया 

तुम्हे नही ज़रूरत किसी की...
उम्र की धूप 

जो उतर आई है तुम्हारे चेहरे पे...

मुझे अच्छा लगा...


 

सुबह की सुहानी धूप सी तुम...
कब खिड़की पे चमक आई...गुमान भी ना हुआ..
हा ...तुम्हारा गरमा गरम एहसास...
मुझे बहुत अच्छा लगा...
सिक उठा पूरा तन बदन...
तुम्हारा साथ मुझे अच्छा लगा....
यू ही बिन बताए तुम्हारा...अपनेपन से चले आना....
छा जाना... घटा की तरह मुझ पर........
सोए ज़ज्बात..को जगाना........
मुझे अच्छा लगा...

बे-ज़ुबान


कतरे जो पर उसने मेरे...
मैं आह ना किया..........
उड़ने का आज तक मैने कभी
गुमान ना किया....
शायद वो समझा नही मेरे...प्यार को..
मुझ बे-ज़ुबान ने तो टूट कर
उसे प्यार ही प्यार किया....


उड़ने को आसमानो मे...जमी का साथ छोड़ना होगा....
फैला कर अपने पँखो को...हवा मे तैरना होगा.........

Friday, January 3, 2014

आओ सखी आओ..मेरे संग आओ..



ना जाने क्या हुआ मुझको... 
नयन भर भर आए हैं......... 
सुनकर पीड़ा उनके दिल की.. 
अश्रु नही रुक पाए हैं.......... 
देखा तुमने क्या जीवन मे... 
कोई सुख ना पाया हैं........ 
बहती हैं बस नीर की नदिया.. 
कैसे दिन ये आए हैं......... 
काश कोई तो होता...
जो तुम्हे हॅसा पाता... 
देता तुमको थोड़ा सा सुख.... 
थोड़ा तो जीवन मे बदलाव लाता
तुमको देख कर
कुंती माता की हैं याद आती... 
महाभारत मे जनम जनम तक... 
कृष्ण से उसने....
ना कभी खुशिया माँगी... 
तुम भी मुझको ...
सीता माता...मीरा...कुंती सी... लगती हो.....
रहती हो डूबी दुख मे.... 
ना किसी से कुछ भी कहती हो....... 
चाहो तो थोड़ा सा दुख...
हमसे भी तुम कह जाओ... 
आओ प्रिय आओ...
मेरे संग...तुम भी कुछ गाओ.... 
लगो हमारे हृदय से तुम...
अपना दुख हल्का कर जाओ... 
आओ सखी आओ..मेरे संग आओ..

Wednesday, January 1, 2014

पिछले बरस...


रिश्तो को पाला पोसा बड़ा किया...
आई आँधी वक़्त की...
उसने उन्हे लील लिया...
जबकि कहीं से एक भी शाख
कमजोर ना थी...जो टूट जाती...
चटाख से...किसी के खीचने से...
लेकिन इस साल ऐसा भी हुआ..
शायद नसीब को यहीं मंज़ूर था..

तुमने कहा...
कुछ बीमार दरख़्त गिरे..
उनका तो गिरना ही अच्छा...
वरना
जूझते रहते जिंदा रहने के लिए
वो अपने आप से....
और तुम उनसे..
कुछ चेहरे जो नक़ाब मे थे ....
उन्होने जताई
अपनी असलियत...
तुम्हारा भरम टूटा...
अपनी सोच पे तुम्हे तरस आया..
सच अच्छा ही हुआ..
जो खुल गई तुम्हारी आँखे..

गीली मिट्टी पे
रखा जो तुमने पाव..
यक-ब-यक .लड़खड़ाया......
गिरे नही तुम
संभाल लिया अपने आपको...
लेकिन एहतियात के तौर पे ......
तुमने रख दिया एक चिराग......
मिट्टी सूखने की खातिर.................
क्या गीली मिट्टी रिश्तो वाली....
जज्बातों से भरी
एक चराग़ से सूखेगी..नही ना...
फिर क्यूँ छोड़ आए तुम
मुझे अकेला... कब्र मे...
मुझे घुटन होती हैं वहाँ..
तुम आओ तो रौनके..बढ़ जाए......
फिर से
मेरी गीली कब्र भी रोशन हो जाए..
तुम्हारे मुट्ठी मे दबे बीज..
कैसे फूलेंगे..फलेंगे
मिट्टी मे तो इन्हे रोपना ही होगा....
वरना...
गिर कर बर्बाद हो जाएँगे ये
नन्हे बीज....
ऐसा करो अबकी बार...
ज़मीन भी तुम्हारी... रोपना भी तुम.....
साजो संभाल भी तुम्हारी....
देखे कैसे नही फूलते
ये बीज अबकी बरस....

तुमने जो लगाया सीने से...

तुमने जो लगाया सीने से...
मिल गया सब कुछ मुझे खुदा से..
महक उठी मैं..चहक उठी मैं..
एक बार फिर मैं...दुनिया मे....


Tuesday, December 31, 2013

एक प्रशन..



जब नही रहेगा 
मेरे चेहरे पे तेज़..
मुरझा जाएँगी...

सब कलिया..
जीवन की..
उम्र भी बढ़ जाएगी....
झुर्रिया 

चेहरे पे बहुत 
आ जाएगी..
चेहरे की रौनक 

कहीं खो जाएगी..
बेकाबू होगा 

मेरा हाथ पाव.......
अशक्त होगी 

मेरी चाल.....
क्या तब भी 

तुम मुझे थामोगे.....
मेरा साथ 

निभाओगे..
मुझे इसी तरह चाहोगे.....

काश कोई साल तो ऐसा आए..


कुछ नही होगा बस....
दीवार का कॅलंडर
बदल जाएगा...आ जाएगा
नया साल..
लेकिन..कुछ भी नही
बदल .पाएगा..होता आया हैं
सदियो से यही..
हम मन को समझाते हैं...
शायद...बदल जाए
ग़रीब के हालात..
अबकी साल
ना सोए कोई भूखा...
सब बच्चे जाए स्कूल...
कोई ना मिले बीनता कूड़ा
खुशहाली ऐसी आए की...
हर औरत हो सुरक्षित...
पुरुष मर्यादा मे नज़र आए...
काश कोई साल तो ऐसा आए..
काश नया साल...कुछ तो
खुशिया लाए..हम सब साथ मिल कर मुस्कुराए..