Friday, December 20, 2013

शुक्रिया जिंदगी....



कैसे बीत जाते हैं 
जिंदगी के पल...
कल तक करते थे ..
तॉतली भाषा मे बातें...
आज स्कूल जाने लगे ..
फिर हो गये बड़े ...
दिल मे तमाम खावहिशे लेकर...
जिंदगी यू ही बीत जाती हैं..
कुछ ख्वाहिशे पूरी हो जाती हैं..
कुछ इंतज़ार करवाती हैं...
शायद
इसी का नाम हैं जिंदगी...
जो हमे अपने साथ साथ लेकर
आगे आगे आती हैं.............
ऐसे आप जैसे तमाम दोस्त
देते हैं हौसला...
बढ़ाते हैं जिंदगी की कीमत..
और
जिंदगी आप सब के साथ
हंसते हुए...गुजर जाती हैं.........
कुछ गम दे जाती हैं.....
कुछ खुशिया साथ लाती हैं...
शुक्रिया जिंदगी....
जीवन मे रस भरने के लिए
लोगो को अपना करने लिए....

Wednesday, December 18, 2013

कानो मे..... घंटिया


एक दिन जब नदी किनारे
डाला पानी मे पाव...
तडतडा उठी बिजलिया..
सहम गया मेरा पाव....
शायद तुम थे...........
जो कर रहे थे बरसो से
चिर मिलन की प्रतीक्षा...
नदी किनारे................
खड़े थे...मेरे लिए ही
अपनी बाह पसारे.....
की कब होगा हमारा मिलन....
जिसकी साक्षी बनेगी वो
शिव की मूर्ति...
जो नदी मे खड़ी थी.......
गवाह बनकर ...............
क्या ऐसा भी होता हैं......
मैने तो सुना था......
मिलन पे कानो मे.....
घंटिया बजा करती हैं..
वही होती हैं प्यार की हामी...
जो हिल हिल कर.......
जोरो से प्रेम के साक्ष्य
मे बजा करती हैं........

चाँद ने की चाँदनी से बात...
उसके बाद
ढल गई रात ..खो गया चाँद...
देकर वादा...फिर  आउगा...
मेरे यार....
करना बेसब्री से मेरा इंतेज़ार...

देह की आँच पे सिकता एक रिश्ता

देह की आँच पे सिकता एक रिश्ता
कभी नही ले पाता आकार...........
तृप्त कर अपनी आत्मा..
पुरुष मे शेष रह जाता
सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना अहंकार....
नही जानता ...क्या चाहिए उस
कोमल हृदय को..
क्यूँ राह तकती हैं तुम्हारी
क्यूँ सहती हैं उपेक्षा.......
नही रखती कोई भी अपेक्षा...
रख कर कंधे पे पुरुष के परिवार का बोझ
बस आगे बढ़ती जाती हैं...
बिना बोले बिना कहे........
अपना फर्ज़ निभाती हैं...
गर कभी मुख भी खोला तो पता हैं..
सिल दिया जाएगा.....
दी जाएगी ऐसी यातनाए...............
वो उफ्फ भी ना कर पाएगी...........
मिला हो उसे जीवन मे प्यार
या
धिककार पता हैं...खामोश रहना हैं..
वरना बाहर आ जाएँगे....कमरे के सारे भेद...
जिनके साथ उसे उम्र भर रहना हैं...

माया मृग ji लिए....उनकी कविता "झूठ बोलती स्त्री" से निकलता जवाब

माया मृग ji  लिए....उनकी कविता "झूठ बोलती स्त्री" से निकलता जवाब

कैसे पढ़ लेते हैं आप स्त्री मन को..
कही आप स्वय स्त्री तो नही..
बाँध लेते हैं खुद को उसके मन से..
उसके झूठ से..
कभी कभी तो आप उसकी......
चोरी भी पकड़ लेते हैं.....
मुझे तो विश्वास ही नही होता
जब आज के युग मे स्त्री स्त्री को नही पढ़ पाती..
आप पुरुष होकर कैसे पढ़ लेते हैं...
इतनी कठिन किताब...
"मैं हूँ स्त्री"

Tuesday, December 17, 2013



तुम्हारी अम्मी
एकदम सच कहती हैं..
हर माँ मे एक लड़की होती हैं..
जो ज़िम्मेदारी से गुजर कर...
प्रौढ़ हो जाती हैं..

माँ बनते ही लड़की...
कहीं खो सी जाती हैं..
छूट जाता हैं 

उसका अल्हड़पन...
माँ ही मां बच जाती हैं..
क्यूँ सही हैं ना..माँ..
आप ने भी खोया हैं ना 

अपना बचपन..
जवानी और अल्हड़पन..
हम बच्चो की खातिर..

गाव से शहर को निकला एक युवक...


निहोर की याद मे खुद को जला डाला
उस बेचारी को क्या पता 

अब निहोर नही आने वाला..
पता नही क्या हुआ होगा निहोर के साथ..
शहर की हवा..सबके बस की नही होती..
निगल जाती हैं..ना जाने कितनो को..
सबकी किस्मत अच्छी नही होती..