Saturday, November 2, 2013

तूने मुझे जाना, 
पहचाना 
मुझसे प्यार किया..
की मेरे मन को 
छूने की कोशिश
क्या ये तेरा 
एहसान नही..
क्यूँ करना चाहते हो 
मुझे कलमबद्ध...
तेरे सिवा 
मेरी कोई भी 
पहचान नही..

ना छोड़ना 
उनका हाथ 
कभी..
वरना 
कही टूट ना जाए 
उनकी 
सांसो की लड़ी.

इस शहर का रिवाज़ ही कुछ ऐसा हैं..
हर शख्स किसी ना किसी गम मे डूबा हैं..

तुम्हारी तन्हाई 
उसे तुम्हारे और 
करीब ले आएगी..
मत सोचना कभी 
खुद को अकेला..
सुनकर तेरी ये बात
उनकी जान ही 
निकल जाएगी..

तू
चराग हैं
फिर भी
पाक हैं
इरादे
तेरे
नेक हैं
जला तो
यार के घऱ
बुझा तो
अपने
प्यार के दर

स्त्री मन ही
समझ पाता  हैं
प्रेम
पुरुष मन तो
कठोर हुआ करते हैं
अहंकार के मारे,
दर्प से  भरे,
मग़रूर,
मन की  बात
समझ कर भी
न समझने वाले  



सब
गुजर
जायेगा

होंगे हम ,

होगे तुम
बस धुँआ 
रह  जायेगा


किसी की
शम्मा
जल उठी,
कहीं चराग
बुझ गया ..
उफ़
ये क्या हुआ
किसी को
ख़ुशी  मिली
कोई
गम से
भर गया