Saturday, June 29, 2013

मोहब्बत का महल हैं ये...कोई ताज महल नही..




मोहब्बत का महल हैं ये...कोई ताज महल नही..
जो किसी की मौत पे टिका हो...
सैकड़ो हाथ काट दिए गये हो मजदूरों के..
इस ताज महल की खातिर..
हम तो इसे मजदूरों की आहों पे टिका
एक मकबरा मानते हैं..क्यूँ....
ताज महल का दूसरा नाम..अगर हम..
"आह महल" रख दे..तो कुछ ग़लत ना होगा..क्यूंकी..
प्यार तो समर्पण का दूसरा नाम हैं..
एक दूसरे की खुशियो की खातिर..एक संग
जीना मरना प्यार कहलाता हैं..
हाथ पकड़ कर अपने हमसफ़र का..
मीलो के फ़ासले तय कर आना..प्यार कहलाता हैं..
प्यार ये थोड़े ना हैं की..
शाहजहाँ की तरह
नूरजहाँ की बहन से शादी की लालच मे..
नूरजहाँ की मौत का इंतेज़ार करना और
उसके .मरते ही ताज महल बनवा देना..
उसकी याद मे.....या यू कहों...
अपने झूठे प्यार को अमर करने की खातिर..
एक सच्ची औरत के प्यार को ढाल बना लेना..

सौ बरस भी कम पड़ जाते हैं...क्यूँ सच हैं ना..

दो दिन दो सदियो जैसे हो जाते हैं...
जब वो हमसे बिछड़ जाते हैं..
मिल जाए तो सौ बरस भी कम पड़ जाते हैं...क्यूँ सच हैं ना..

मेरे खवाब पहले आए या मेरा नूरानी चेहरा...
कुछ तो बताओ ना..दिल मे मुझको बसाने वाले....


आबोला प्रेम हैं उनका...खामोशी बोल देती हैं..
कौन कहता हैं मोहब्बत बेज़ुबान होती हैं..


यही तो मुसीबत हैं मेरे यार..
तुम भी खामोश...हम भी खामोश...
इजहारे मोहबत भी ज़रूरी हैं.....
प्यार को अंजाम देने के लिए...

हाहहाहा....तुम्हारी यही अदा तो मुझे भाती हैं..
ना चाहते हुए भी तुम्हारे करीब ले आती हैं..
(ना चाह कर भी चाहना तुम्हे...बहुत अच्छा लगता हैं..)

दो का करना आठ तो ..जल्दी जाए सीख..
मानवता का पाठ तो..सीखे कैसे चार सौ बीस

इंसान की बेकली...कहीं ख़त्म ना हो जाए..
बादल अब कहीं और जाओ...मेरे यहा नही आओ..

अब संकल्प लो..नही काटोगे कोई पेड़

ग़लती प्रकती की नही हमारी हैं..
खुद ही पैरो पे हमने मारी कुल्हाड़ी हैं..
जब तक खेलते रहेंगे प्रकती से हम..
वो हमे इसी तरह रूलाती रहेगी..
जो लादा बोझ उसके मन पे तुमने..
उस से वो तुम्हे भी परिचित कराती रहेंगी
मत लादो मन पे कोई पहाड़..
अब संकल्प लो..नही काटोगे कोई पेड़
मन ही मन ये कसम लो..
बोलो कहते हो कसम..आज से..

सच मे थॅंक्स ..हैं तुम्हारा..




जब होते हैं मेरे मन मे ढेरो सवाल.. 
तुम अपनी बातों से  
सारे सवाल हाल कर देते हो... 
करते हो बातें इतनी गहरी... 
हमे निढाल कर देते हो.. 
कहाँ से लाते हो इतना सब्र.. 
हमे ही बेसवाल कर देते हो.. 
तुम्हारी मजबूती ही..मुझे 
तुम्हारे करीब ले आती हैं.. 
तुम्हारी बातें...हमे और भी  
पवित्र बनाती हैं...सच मे थॅंक्स ..हैं तुम्हारा..

Wednesday, June 26, 2013

खामोश दीवारो से तो पूछ लो एक बार मेरी तस्वीर का बोझ तो सह पाएँगी वो..



तुम्हारे साथ चल कर बहुत दूर निकल आए हैं..
अब और कही जाने की ज़रूरत ही नही..

सूखे फूलों को इंतेज़ार था..एक हवा के झोंके का..
अलग तो वो बहुत पहले ही हो चुकी  थी....

खामोश दीवारो से तो पूछ लो एक बार
मेरी तस्वीर का बोझ तो सह पाएँगी वो..

आसमान को ज़िद हैं धरती पे आने की..
हमे ज़िद हैं..खुद को छिपाने की..

तुम्हारे पास तो बहुत कुछ हैं अभी भी..
उनकी तस्वीरे..कपड़े, किताबे और ना जाने क्या क्या..
उनकी सोचो जिनकी उजड़ गई हैं बस्तिया  नामो निशा तक न बचा...

बरसात का नही हमारा ही दोष हैं..
काट दिए सारे पेड़..अब कहाँ रोक हैं..
बेच कर पेड़ सारे पैसे खा गये..
लेकिन यार हम तो मुसीबत मे आ गये..