Thursday, January 17, 2013

एक धोखेबाज़ इंसान की फ़ितरत


एक बार की गई भूल स्वीकार हैं..
दो बार की गई भूल आदत मे शुमार हैं..
जो करे बार बार भूल..उसे छोड़ देना ही अच्छा..
क्यूंकी उसकी ये आदत आपके लिए बेकार हैं..

एक धोखेबाज़ इंसान की फ़ितरत
कभी नही जा सकती हैं
क्यूंकी वो ऐसे ही हैं..जैसे
चाहे जितना दूध पिलाओ
साँप तो कटेगा ही....
जिसका काम हैं जहर देना...
वो तो जहर बाटेंगा ही..
अब तुम लाओ कोई जड़ी बूटी...
काट दो उसका जहर...
या छोड़ दो उसे जंगल मे..
घूमने को इधर उधर..

बर्फ का गोला वाह ....चलो फेकते हैं एक दूसरे पे.. तुम बिखर जाना..लेकिन मुझे छूकर..


एहसास.. शब्द से बहुत आगे हैं..
शब्द पद जाते हैं बौने....
जब होता हैं एहसास......
किसी के अपना होने का..

पति हैं राजकुमार...
जो रहता हैं....शान से 
पत्नी होती हैं..पटरानी..
जो करती हैं राज़
उस राजकुमार पे..
अब बताए कौन महत्वपूर्ण

कैसे बिखरे खवाब तुम्हारे
संजोया जो हैं बचपन से
निकल आएँगे सारे आँसू
टूट गया जो चट से..

हम तो जीना चाहते तुम्हारे साथ
ये हैं अरमान..मेरे हमनवाज

यादों की बारिश ने आज 
मुझे पूरा भिगो डाला हैं..
क्या करूँ अब..नही मेरे बस मे
ये मौसम का हवाला हैं.........

तुम्हारे प्रशन मे दम हैं..
तुम्हारा ख़याल भी अति उत्तम हैं..

जिंदगी की राह मे रफ़्तार ज़रूरी हैं..
हो बारिशे कितनी..बढ़ना ज़रूरी हैं..
रुक नही सकते दुनिया के बवंडर से..
इस राह मे सब मौसम पे प्रहार ज़रूरी हैं

अजब सी कशमकश हैं जिंदगी मे तुम्हारी..
कैसे  गुज़रेगी इस तरह ये जिंदगी तुम्हारी..
थाम लो दामन किसी का....बना लो अपना 
आसान हो जाएगा सफ़र जिंदगी का..

बर्फ का गोला वाह ....चलो फेकते  हैं 
एक दूसरे पे..
तुम बिखर जाना..लेकिन मुझे छूकर..

खुशी को हुआ क्या...
कोई तो पूछे उस से..
क्यूँ हो गई खफा....
क्यूँ गई तुम्हे छोड़कर..
ये सवाल आज भी मुझे 
परेशान करता हैं..
कोई हैं क्या जो .....
मेरा ये प्रशन
हल कर सकता हैं..

कहना खुशी को शुक्रिया 
जो लौट आई मुस्कुरा कर..
वरना कहाँ जाते हम....
यू ठोकर खा कर ..

कोई तो होगा....
जिसने छुआ हैं दिल तुम्हारा
मौन हो या शब्द 
या कोई एहसास प्यारा प्यारा 

इस रास्ते पे गफलत भी खुशी दे जाती हैं..
सच का पता चल जाए तो कभी कभी .....
खुशी भी दरवाजे से निकल जाती हैं..

देखा जो किसी और की नज़र से 
मायने बदल देगी जिंदगी..एक पल मे..

रहे यही एहसास जिंदा तो समझो 
अपनी भी नौका पार हैं..
सच काहु यार.....प्यार बिना
सब बेकार हैं....

देश का आईना बदल डाला हैं..
जो जिस चीज़ का मास्टर हैं...
उसने उसी मे किया घोटाला हैं..




मृत्यु गीत तुम रचते जाओ





तुम कालो के भी काल हो 
गर समझो ....स्वय को ...सब कुछ  
नहीं बने तुम मृत्यु  गाल हो 
मेरी मानो अपना मृत्यु गीत स्वय लिखो 
मत रचने दो किसी को साजिश 
मत सोचो ...किसने किया हैं ...ये कुछ 
अपनी पीड़ा सहते जाओ 
मृत्यु गीत तुम रचते जाओ 
रच दो इतिहास जगत में ऐसा 
मिट जाये तम,  न रहे अँधेरा 
शूरवीर हो,  स्वय को पहचानो 
शत्रु के आगे न समर्पित जानो 
कोई आ  जाये तुमसे टकराने 
आगे बढ़कर उसे भगाओ 
मृत्यु गीत तुम रचते जाओं 
खुद में जीवन भरते जाओ 
मृत्यु गीत तुम रचते जाओ।

Tuesday, January 15, 2013

मुझे खुद से शिकायत हैं..

मुझे खुद से शिकायत हैं..
मुझे अपनी ज़रूरत हैं...
तंग हूँ इन तंग गलियों से..
अब मुझे किसी की नही हसरत हैं
जो आता हैं सो आ जाए
जो जाता हैं सो जाए
नही रोकूंगी किसी को मैं..
मुझे अपने से उलझन हैं
आ गई हूँ राह बदल कर
छोड़ कर सारी दुनिया को..
रहने दो अकेला अब मुझको..
नही किसी से शिकायत हैं...
जो मिला जैसा मिला.......
किया सब क़ुबूल खुशी खुशी..
अब नही सही जाती..मिली जो ऐसी खुशी..
सबको सलाम करती हूँ..
आज से अपना सब कुछ
तुम सब के नाम करती हूँ..
जा रही हूँ सब छोड़ कर.......
अंतिम विदा ...सबको............
अब तो सबके प्यार से भी डरती हूँ..



अच्छे दिन फिर आएँगे..

मत रो मेरे बंधु सखा तुम 
जीवन मे ऐसे भी पल आते हैं
जिनको माना अपना सब कुछ..
बीच कहीं छूट जाते हैं...
कुछ होते हैं बेबस इतने..
चाँद पार बस जाते हैं..
कुछ होते हैं अहम के मारे...
अपना अहम दिखाते हैं..
मत रो मेरे सखा तुम..
अच्छे दिन भी आएँगे..
छोड़ गये जो अपना घोसला
फिर से नीड बनाएँगे....
लौटेंगे वो तेरी खातिर
अच्छा वक़्त बिताएँगे
मत रो मेरे बंधु सखा तुम
अच्छे दिन फिर आएँगे..



तुम्हारा साथ

तुम्हारा साथ हो तो 
क्या नही कर सकते हैं
देख सकते हैं लाखो बसंत, 
जमाने की सैर कर सकते हैं..
नही होते जो साथ तुम तो 
छत पे टिका चाँद भी ना सुहाना लगे..
पुकारे मुझे ज़ोर ज़ोर से
फिर भी वो बात ना दिखे..
सब करामात हैं तुम्हारी चाहतो की..
हो पास तो सब अपना लगे..
चले जाओ दूर तो सब बेगाना लगे



दुआ

दुआ तुम्हारी पहुची जो उस तक
महसूस किया हवा के झोंके से
आ गई फिर से तरावट....
खुल के जो मिला फिर ..
एक बार जिंदगी से..
सच सपना था लेकिन
फिर भी भला लगा
आज तेरा मुझे दुआ मे
खुदा से माँग लेना भी
बहुत अच्छा लगा..



जुदाई


खुदा करे वो सामने ना आए... 
रहे दूर हमसे.
नज़रे छिपाए 
जुदाई का दुख इतना बड़ा हैं.. 
कैसे भला हम उनसे छिपाए.. 
बता दे अगर हम उनको..... 
कैसे फिर उनसे आँसू छिपाए..
 रहे दूर हमसे..कैसे हैं दिन ये आए..

Sunday, January 13, 2013

धूप को चाहिए हल्का सा रास्ता.. लेकिन हमे तो मिला हैं मोहब्बत का वास्ता..


तुम्हारी चिटकन हमारी भटकन
हैं आईने की असली सूरत..
कभी टूटी...कभी दिखा असली चेहरा..

याद किया जब तुमको
नींद जा छिपी..किसी गहरे सागर मे..
हवा का एक झोंका भी 
ना ले सका खवाबो मे...

भस्म हो जाता वो गर तेरी आँखो मे...
कहाँ देख पाती तुम उसे अपनी निगाहों मे..

लो यहा भी देखा अपना फायडा
बने फूल तो भी याद हैं हफ़्ता वसूल..
जबकि फूल देता हैं सिर्फ़ खुश्बू
नही शूल, धूल...

खुदा के हवाले....
या फिर जहाँ "हवा ले"चले...

चलो बच तो गये...मिटने से..
वरना हवा ले जाती जाने कहाँ उड़ा के..

मेरा घर का निशा हैं अब मिट चुका...
दिखता नही हैं किसी भी नक्शे मे........

फैशन के दौर मे टीकाउ की इच्छा
बाबू जी ये सोचना भी अब अच्छा नही लगता..

कैसे तुमने टीकाया हैं..हमे भी बताओ
आज कल तो हवा का चलन ही उल्टा हैं .

घरौंदे कोई नही करता पसंद..
सबको महल की दरकार हैं..

धूप को चाहिए हल्का सा रास्ता..
लेकिन हमे तो मिला हैं मोहब्बत का वास्ता..

आ जाओ फिर देर किस बात की हैं..
सब मिल कर एक साथ घर मे कूदेनगे..

उसी हवा का वास्ता..पाकर
हम लौट आए हैं अपने घरौंदे मे..

कॉटर और कुटीर हमे बहुत भाते हैं
ये सब हमे अपनो से मिलवाते हैं..

तुम आओ और घूमाओ अपना सुदर्शन चक्र




आ जाओ कृष्ण 
आज तुम्हारी ज़रूरत हैं
नही सॅम्हल रहा हैं हमसे देश
तेरे चक्र की ज़रूरत हैं
आज फिर दुश्मनो ने 
सर उठाया हैं
देश के जवानो को बर्बरता से...
मार गिराया हैं..........
पार कर  दी हैं हद न्रश्रांशता की
बेचारो का सर भी 
नही लौटाया हैं
बिलख रही हैं 
हेमराज की पत्नी माँ और पिता
बेचारो ने अंतिम दर्शन
तक ना पाया हैं
तुम आओ और घूमाओ
अपना सुदर्शन चक्र 
अब सही वक़्त आया हैं
नही कर पा रहे 
हम सब कुछ भी
अब तेरा ही सरमाया हैं
डालो ऐसी दृष्टि कि सब 
जल जाए दुश्मनो का
ना रहे देश मे कोई मुसीबत 
अच्छे दिन फिर लौट आए..
हमारा भारत एक बार फिर
सोने की चिड़िया कहाए......