Saturday, December 8, 2012

काम अच्छा चुना हैं.. खवाब भी अच्छा बुना हैं.


जो लोग दुखो की नुमाइश नही करते ..
ये मत समझना वो..वो दुखो को महसूस नही करते..
डूब जाते हैं भीतर तक..लेकिन दिल खाली नही किया करते

यू ही जीते जाओ..दुखो को पीते जाओ..
हंसते रहो हमेशा..गॅमो को दूर भगाते जाओ..

आ गये जो दिल मे तुम्हारे
कहाँ वो फिर लौट कर घर गये???

उदासी दिल का हिस्सा हैं
अब तो ये रोज़ का ही किस्सा हैं..
जान सकता हैं वही
जो इसमे रोज़ पिसता हैं

आँखो से गम का रिश्ता पुराना हैं..
 बहे चाहे ना बहे....उन्हे तो अपना गम छिपाना हैं..

ख़याल उड़ भी जाएँगे तो कहाँ जाएँगे..
आसमान हैं छोटा उनके लिए हमारे पास ही आएँगे

तुम कहाँ बदल पाओगे..
किया था जो प्यार
उसे कहाँ भूल पाओगे..
रहोगे दिल मे हर वो सपना..
जो हक़ीक़त मे ना बदल पाओगे..

नींद तो दे दी उनको..
वो सोए सारी रात..
आप रह गये करवाटे बदलते....
उनको....खवाबो का साथ..

दर्द मे भी कोई साथ निभाता हैं..
जब आँसू आते हैं..दिल भी भीग जाता हैं..
नही रहती किसी की भी ज़रूरत
अंधेरा साथ आता हैं

वो भी हमारे
आप भी हमारे
लिखने मे ज़रा सी हो गई देरी
आप हैं की बस बुरा माने

वक़्त कहाँ कर पाएगा इलाज़
जब मर्ज ही लाइलाज़ हुआ

मन का मीत हमारा मन हैं..
जीवन का नवगीत हमारा मन हैं
इस से लो शक्ति तुम..
सब कुछ कर सकता
हमारा मन हैं..

काम अच्छा चुना हैं..
खवाब भी अच्छा बुना हैं..

इंक़लाब भी आएगा..
भले हो वो आज बच्चा
कल तो युवा हो  जाएगा

तेरी तलाश उसे होगी..
जिसे तेरी याद होगी..

आज भी सब पहले जैसा हैं...


जो मोड़ा पहला पन्ना
सोचा  बाद मे पढ़ेंगे..
अभी हैं सब लोग बैठे
देख लिया तो क्या कहेंगे..
तुम हो की दिल पे ले बैठी..
नाराज़ हो गई मुझसे
ना जाने क्या क्या सोच बैठी..
तुम्हारा सोचना भी जायज़ हैं..
नही हैं कुछ दिनो से
हमारे बीच कोई वार्तालाप..
मन मे शंका आना ठीक ही हैं..
मत सोचो कुछ  भी उल्टा पुल्टा
आज भी सब वैसा का वैसा हैं.
नही बदला हूँ मैं...आज भी सब पहले जैसा हैं...

कुछ तो समझे मज़बूर था बेचारा

आप तो प्यार मे भी सख़्त लगते हो..
नही देते हो माफी..ना जाने कितनी सज़ा
सोच के रखते हो...


 वो इतनी नादान नही..जो ना समझे तेरी बात
खामोश रहो या लब खोलो..जाने हैं वो हर बात..

हौसलो से उड़ान होती हैं सब जानते हैं...
पंख तो केवल पंछी की शान होते हैं..

ख़याल उँचे थे हमारे..हैसियत उँची थी उनकी..
हम ख़याल ही करते रहे उनका..वो ना जाने कब अहंकारी हो गये

खोखला दिल, खोखला मॅन..खोखला हुआ सब कुछ..
क्या लिखे एहसास अब...नही बचा अब कुछ

मत किया करो याद इतना
उसे हिचकिया आती हैं...
रात भर सो नही पाती.....
बेचारी की जान जाती हैं..

मोहब्बत मे मशवरे अच्छे नही लगते..
मोहब्बत मे दायरे सच्चे नही लगते..

आप तो प्यार मे भी सख़्त लगते हो..
नही देते हो माफी..ना जाने कितनी सज़ा
सोच के रखते हो...

ज़ज्बात से खाली होकर भी क्या करोगे..
क्या तब मुझे नही याद करोगे..

कविता से लोगो के रगो का लहू जोश भरता हैं..
लोग समझते हैं की वो कविता लिखता हैं...

यही तो कमाल हैं..वो कितना बेमिसाल हैं

Wednesday, December 5, 2012



तेरा भरोसा मुझे यहाँ तक लाया हैं.. 
वरना जमाने ने तो मुझे रोज़ आजमाया हैं.. 
फकीर की बातें रंग लाई हैं... 
तभी जमाने से की उसने रुसवाई हैं.. 
धागे जो खुले तो दर्द होना लाजिमी हैं,, 
जन्मो का बँधा बंधन,,उसकी गाँठ कभी नही खुलनी हैं 
सच कहा तुमने..कच्चा धागा ही उम्र भर साथ निभाता हैं.. 
पके हुए रिश्ते हो या फल, पेड़ से गिर जाया करते हैं फलो की मानिंद 
तुम्हारी कदमो की आहट जानता हैं दिल.. 
हम कितना भी मोड़ें कदम..ठिठक जाते हैं वही.. 
मौसम सर्दी का हो या गर्मी.. 
हम हमेशा एक से रहे.. 
मिले भी तो अजनबी की तरह... 
गये तो अपनो को भी मात किया.. 
तुम जो बदल गये तो बदल जाएगा जमाना.. 
तुम से ही तो रोशन हैं..मेरा ठिकाना.. 
क्यूँ की तुमने आरजू बात.. 
पहुच जाना था उसके घर होते ही रात 
तुम मिले हो तो अब लगता हैं  
जिंदगी इबादत के सिवा कुछ भी नही 




माटी से जुड़े हो..माटी को क्यूँ भूलते हो..
मिल जाना हैं माटी मे...क्यूँ गुरूर करते हो..

मेरी आँखो से जो देखे खवाब....
सच बन कर ना उतर आए...
बन जाए तेरी मुश्किलो का सबब..
तेरी जान पे ना बन आए..

तेरे कदम मेरे कदम..मिल गये तो हो नई दिशा का निर्धारण..
चले कुछ इसतरह साथ...दो जिस्म मगर एक जान हो जैसे..

प्यार मे सारे वार जैसे हो तीज त्योहार
लगे सब कुछ नया सा...जैसे आँखो मे सपना हो सजा सा..




दिल की दौलत





हो जिसके पास दिल की दौलत 
वो ग़रीब कैसे...
जो ना निकले जेब से पैसे, 
वो अमीर कैसे
बॅंक बॅलेन्स से क्या होता हैं...
जो खर्च कर सके सबके लिए 
वही शहंशाह होता हैं..
वरना पैसा होते हुए भी मैने...
बहुतो को ग़रीब ही देखा हैं..





जब भी मैं मुस्काती, 
तुम हंस देते हो..
जब मैं चुप हो आती..
तुम भी क्यूँ सब कुछ
खो सा देते हो...
क्यूँ अटकती हैं तेरी साँसे..
मेरे होने और ना होने से..
मुझसे हैं ये तेरा जीवन 
क्यूँ ऐसा कह देते हो..
मुझको लगता हरदम डर सा..
तुमको बस खो देने का..
नही कर पाती इज़हार इसलिए..
तेरे अपना होने का..

Tuesday, December 4, 2012

परिंदा था कहाँ रुक सकता था..लग जाती जंग परो मे जो ना उड़ता था..




परिंदा था कहाँ रुक सकता था..लग जाती जंग परो मे जो ना उड़ता था..

निकल गई दीवाली..
तुम होली मे ही पड़े हो..
लालो लाल क्या हुए..
सच मे अच्छे लग रहे हो..

मरने मारने की बाते ना किया करो...
बेतकलुफ होकर जिया करो..

शायरी हैं तो  ईमोशन  भी आएगा
वो शेर ही क्या जो ना रुलाएगा..

हालात से शिकस्त तो बुजदिल खाते हैं...
हम आप तो हर हालात से लड़ जाते हैं..


करते भी क्या जिस्म मे तुम्हारी रूह छोड़ कर
जिंदा कहाँ रह पाते तुम हमारे बगैर..

तुम्हारे चाहने वाले बताएँगे तुम्हारा हुनर या ऐब
तुम कहाँ देख पाओगे ये सब..खुद के भीतर

Monday, December 3, 2012



साहित्य प्रोत्साहन पत्रिका के संपादक श्री राजेंद्र कृष्ण  श्रीवास्तव जी की मैं बहुत आभारी हूँ जिन्होने अपनी पत्रिका मे मुझे Poonam Matia ji, Vijaya Mishra ji, Prof. Vishamber shukla ji  के साथ स्थान दिया..पत्रिका वाकई क़ाबिले तारीफ हैं..इसमे बड़े बड़े साहित्यकारो जैसे काका हाथरसी, अशोक चक्रधर, आदम गोंदवी, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, सूर्य कुमार जी जी रचनाए भी पढ़ने को मिली..साथ मे चंद्रशेखर आज़ाद, राजेश खन्ना, दारा सिन्ग एवं कॅप्टन लक्ष्मी सहगल को श्रधांजलि के रूप मे ये अंक  समर्पित हैं..श्री राजेंद्र कृष्ण  श्रीवास्तव जी को बहुत बहुत बधाई..



सिर्फ़ ख़ालीपन रह जाता हैं..




ना मिले प्यार की रोशनी तो
प्यार कहाँ टिक पता हैं..
ज़िद और अना के नाम पे 
ना जाने कितनी बार 
प्यार क़ुरबान हो जाता हैं..
कसमसा के रह जाती हैं जिंदगी..
जब प्यार किसी ज़िद के 
आड़े हाथो आ जाता हैं.....
नही बचता कुछ भी......
सिर्फ़ और सिर्फ़ ख़ालीपन रह जाता हैं..