Saturday, October 20, 2012

मैं हार गई





तुम कुछ भी करो मुझे मंज़ूर हैं
जाना अब कभी नही तुमसे दूर हैं
अगर हुई मुझसे कोई भूल तो कहो ना..
लेकिन यू रूठ कर हमे रहो ना..
हमे अच्छा नही लगता...
लगता हैं सब खो गया हैं हमारा 
कुछ भी नही बचा 
खाली हाथ हैं हमारा
बता दोगे तो अब नही भूल को
दोहराएँगे..जो होगा तुम्हे पसंद..
वही कर जाएँगे....
लेकिन तुम यू ना मुह फेरना...
ना हमको जहाँ मे अकेला छोड़ना..
हम नही रह पाएँगे.....................
मरेंगे तो नही.....हा ......मरे ही कहलाएँगे...
कुछ समझ आया क्या तुम्हे...................




Friday, October 19, 2012

अपनी ग़ज़ल मे आग लगाओ... अंधेरो से उपर आ जाओ..



अपनी ग़ज़ल मे आग लगाओ...
अंधेरो से उपर आ जाओ..

नही कोई पराया..समझने की बात हैं....
दिल हैं अगर उसका..तो कहने की क्या बात हैं..

आँखो ने अब तक किसी को भी सजदा नही किया..
जब से तुझे देखा जी भर के एक बार..................

माँ की हर बात निराली हैं..
देती हैं जी भर के दर पे आया जो  सवाली हैं..

दम तेरा निकालने ना देंगे..
रोक लेंगे खुदा को भी.....
आगे बढ़ने ना देंगे..

ग़ज़ल कहती हैं लगा दे आग पानी मे...
तुम हो की हर वक़्त डरते रहते हो...

किसने किसको देखा हैं.....
बात तो हैं बस बंदगी की..

समुंदर मे था इतना पानी..मुझे क्या पता वो रोया हैं सारी रात....
मोहब्बत तो उसने की थी....किसी सीपी के साथ...

प्यार मे रहो..प्यार से रहो..
दोनो खुदा की इबादत हैं...

नज़रो से पिला देना...
लेकिन पानी मे आग लगा देना
ना रहे कुछ भी बाकी
इश्क़ मे..................
ऐसा एक मंज़र ला देना..

दिल ही तो हैं..
कब किस पे आ जाए...
क्या कह सकते हैं
समुंदर को पसंद हैं सीपी...
हम क्या कर सकते हैं..

तुमने जो लिखा हमारा नाम...
मुझे लगा सूरज लाल हो आया हैं..
आँखो मे उतर आई हया की लाली..
तुमने क्या पैगाम दे  डाला हैं..



ऐसा इल्ज़ाम तो हमने सोचा भी ना था
करना था क्या क्या कर दिया

दिल पे मत जाना..उसके....
दिल मे उतर जाना...........
तब देखना उसका दिल उफ़ तौबा....बेपनाह मोहब्बत

तिल तिल मारना मुझे अच्छा नही लगा....
परछाई से डरना अच्छा नही लगा,
अपनी ही परछाई थी....ये समझना था..

सारा आलम उदास हैं...सबको एक आस हैं वो आएगा..अब नही रुलाएगा

तन्हाई को भेज दो...उदासी के साथ...
आप रहो....उनके साथ..जो निभाए आपका साथ

मिट्टी की क्या मज़ाल जो चेहरे पे आ लगे..
प्यार से हो गया हैं गुलाबी हमारा चेहरा

Thursday, October 18, 2012

क्या लिखू..





क्या लिखू...समझ नही आ रहा..
दिन लिखू, रात लिखू, या कोई 
पुरानी बात लिखू..
खोल दू दिल के दरवाजे.....
या कोई शाम लिखू..........
कैसे खोलू राज़ दिल के...
कैसे सुहाना कोई एहसास लिखू...
तुम्ही बताओ..ना ...............क्या लिखू....
बात लिखी हूँ अगर तुम्हारी....तो 
नाम आए बिना ना रहेगा तुम्हारा
नाम आया जो तुम्हारा...........
महफ़िल मे कोई अपना ना रहेगा....
अब सुझाओ ना...तुम्ही ...क्या लिखू...

चलो और डोर लाए.. नया कोई रिश्ता बनाए




वकील नही जज चाहिए...
मिला दे हमको हमारे प्यार से ऐसा कोई तर्क चाहिए

मिलेगा तो कह देंगे तुम्हारी बात
कर लेगा क़ुबूल दुआ वो हमारे ही साथ

चलो आज नया बहाना लाए
किसी भी तरह उन्हे मनाए

कल के चक्कर मे आज नही छोड़ना हैं...
थामा जो हाथ तेरा जनम जनम नही छोड़ना हैं

मुझे भीड़ मे अच्छा नही लगता
छूट जाता हैं हाथ हमारा........
तन्हाई ही अच्छी ......साथ तो रहते हो..

तब तो क़ुबूल हो दुआ तुम्हारी...
तुम्हारे बाद हैं हमारी बारी


मैने माँगा तेरे लिए, तूने मेरे लिए माँग लिया
हो गई दुआ पूरी कुछ तो नया काम हुआ

वो भी तन्हा  मैं भी तन्हा
अब किसी और से क्या कहना

चलो और डोर लाए..
नया कोई रिश्ता बनाए

Wednesday, October 17, 2012



महक गया सारा आलम..जो चलाई अपने अपनी कलम

आपने परखा हमने परखा
एक ही तो बात हैं..
आप ठहरे हमारे दादा...
कैसे काटे आपकी बात हैं..

खुशी देने वाले को गम नही देते...
अपना जो कहे उसकी आँखे नम नही होने देते..

दिन ने कहा होगा..कल फिर .आउँगा.
मत छोड़ना उमीद का दामन
ये सुनते ही आसमान शर्मा कर
हो गया गुलाबी.....उड़ने लगा हवा मे..

तुम्हारे दो आँसू..
बहे मेरे सामने..
मौत ही ना आ जाए..
इस से पहले..

तेरे जाने के बाद तेरी याद आई..
क्या यही थी तेरे प्यार की गहराई

मैने की कल की बात..
आप को याद आ गई..कोई पुरानी बात..

सच कहा माप तौल हमे भी आता नही..
लेकिन क्या करे उनको इसके बिना
कुछ समझ आता नही..
 

तुम हो अच्छे इंसान
तुम्हे नही हैं इसका भान..
दिलो को छू जाते हो...
जाने क्या लिख जाते हो..

क्यूँ सोचते हो कुछ नही कहोगे..
प्यार की राह हैं तो संग संग चलोगे..
कुछ तुम कहना कुछ हम कहेंगे..
रास्ता आसानी से अपना तय करेंगे

बात कल आज की नही प्यार की हैं....जो सदियो पुराना हैं...
कल किसी और ने किया....आज हमारा जमाना हैं..

मत छोड़ना इसे किसी कीमत पे...
हम सब की ये धरोहर हैं..


हम रोज़ खेलते हैं बैठ कर एक साथ
तुम कहते हो मैं रोज़ जीत जाती हूँ..
मैने तुम्हे जीता हैं, तभी जीत जाती हूँ रोज़
बिना पत्तो से खेले ..जो अभी अभी तुमने बाँटे हैं मेरे आगे..
तुम भी तो हार कर भी खुश हो जाते हो...
चलो बारिश मे एक साथ बालकनी मे बैठे
खेल भी हो जाएगा और बारिश की मस्ती भी..
देखो ना बारिश के बाद सब
कितना चमक जाता हैं ना...
जैसे धुल गई हो धरती, नदी, पहाड़, जंगल
तभी तो मुझे बारिश बहुत भाती हैं..
और बारिश के साथ तुम भी..

Dedicated to my loving Papa



शाम होते ही पंछी भी 
घर को लौट आते हैं.....
जाते हैं जो छोड़ कर हमेशा को..
ना जाने कौन से आकाश मे
विलीन हो जाते हैं..............
शाम के आते ही...याद आ जाता हैं 
सब कुछ....इंतज़ार की वो घड़िया
जो बिताया करते थे तुझे याद करते हुए..
देखा करते थे रास्ता...अब आएगा वो 
थका मांदा दुनिया से जूझ कर..
रख देगा मेरे काँधे पे सर............
दिन की सारी बाते बताएगा..........
अच्छा बुरा  सब हंस हंस के सुनाएगा..
फिर पिएँगे शाम की चाय ....
बालकनी मे बैठ कर..
सारा दिल वो मेरे पास आ कर हल्का कर जाएगा..
लेकिन ये क्या ? 
मुझे तो अपनी सोच को देना होगा विश्राम
कैसे आएगा वो...जो चला गया हो दुनिया छोड़ कर
चाह कर भी वो आ नही सकता..
नही दे सकता वो सहारा..जबकि छोड़ गया हैं
अपना दिल मेरे ही पास..
जो अब भी उसी की याद मे धड़कता हैं
शाम होते ही ना जाने क्यूँ अब मेरा दिल
वही जाकर भटकता हैं..दरवाजे से..आँख 
अब भी नही हटती हैं...सांसो की गति भी तेज़ हो रहती हैं...
लेकिन पता हैं मुझे अब वो आ नही सकता...
बस यादों की आग मे झुलसा सकता हैं..
आ नही सकता..

मेरी कविता मे ये भाव तब उभरे थे जब मेरे पिता जी हमे असमय छोड़ कर दुनिया से चले गये थे..रोज़ शाम होते ही हम सब इसी तरह अपने पापा का इंतेज़ार किया करते थे..कि वो अब आ रहे होंगे जबकि हमे पता था..वो अब कभी नही आएँगे...सच समय भी कैसे कैसे खेल दिखाता हैं ..कभी रुलाता हैं कभी हसाता हैं...

Tuesday, October 16, 2012

हमारी कसम.....







जब से गये हो तुम..
बेइंतहा याद आते हो....
क्या करू इन यादों का
क्यूँ इतना सताते हो....
रहा नही जाता अब तुम्हारे बगैर...
क्यूँ नही एक बार
फिर से चले आते हो..
अब की बार जो आ गये...
जाने नही दूँगी,
बाँध लूँगी आँचल से....
हाथ भी हिलाने नही दूँगी...
रखूँगी इतना ख़याल.......
तुम सोच भी नही सकते हो...
किया हैं तुमने जितना हमे प्यार...
दूँगी सूद समेत तुम्हे उपहार
बोलो अब तो मान जाओगे..
यू नही अब जाओगे...........
फिर ना मुझे सताओगे...
खाओ हमारी कसम.....
हो हमारे जनम जनम.. 

चंद अल्फ़ाज़



डाल के अपनी आदत जाने कहाँ छुप जाते हो..
बंद करू जो आँखे अपनी..मंद मंद मुस्काते  हो..

लो जी कल तक तो बनते थे बहुत वीर
आज हो गये धराशायी...ये कैसे शूरवीर

वो अपना दिल यू लुटाता  हैं...
एक दुपपटे पे बिखर जाता हैं...

समाया जो मुझमे तो क्यूँ निकल जाता हैं...
सोच के ये बात मेरा दम निकल जाता हैं

तालीम और संस्कार तो अब भी वही हैं...
क्या करे अब बच्चो की सोच अलग हैं

सिंदूरी शाम मे..... जो तुम आ जाओ..
चेहरा भी हो जाए गुलाबी...मैं यू शर्मा जाउ
दोनो का रंग मिल कर हो जाए एक........
तुम मुझे  ना पहचान पाओ......

तेरे लब पे हैं मेरा नाम
क्यूँ देते हो इसे और कोई पहचान..

सुंदर सृजन हैं तुम्हारा
रोने से नही लौटता  प्रियजन तुम्हारा
याद करोगे तो आ जाएगा...

उसकी छाँव मे जो गया
वो उसका हो गया..
नही लौटा अपनी जात मे...
कहने लगा तेरा हुआ तेरा हुआ..

दूसरे का हिस्सा खाएँगे...
बरकत कहाँ से लाएँगे...
लेगा जब हिसाब वो.....
बगले झाँकते नज़र आएँगे

जो देखा जमाना तो मोहब्बत कहाँ कर पाएगा..
कौन देगा इज़ाज़त मोहब्बत की....किसको किसको समझाएगा..
नही समझेंगे ये जालिम....इन्हे अपना जमाना याद आएगा..

मत लेना नाम हमारा मशहूर हम हो जाएँगे..
लोग मिलने नही देंगे..दूर हम हो जाएँगे..

इतने सवाल इतने जवाब..
या खुदा पढ़ा होता वक़्त पे...
तो गोया आज हम कलक्टर होते..

जिंदगी नही होती हसीन..
हम हसीन इसे बनाते हैं
करते हैं प्यार सबसे......
सबका प्यार पाते हैं..


मत जाओ अभी छोड़ कर...
अभी तो हम मिले हैं..
अभी तो ना जाने तुमसे
करने कितने शिकवे गिले हैं..

जो बीत गई सो बात पुरानी..
चलो छोड़े अब कोई  नई निशानी..

यादें यादें यादें




यादें यादें यादें
कब जाएँगी ये यादें
जीना दुश्वार कर रखा हैं..
मुझे कही का नही रखा हैं..
सच ..पीछा ही नही छोड़ती...

दिल जहाँ दिमाग़ सब पे
कब्जा जमा रखा हैं....
कुछ और सोचने ही नही देती...
मरी ये यादें....
तुमसे अलग होने ही नही देती
तंग आ गई हूँ इन यादो से.....
अब जाओ तुम मुझे तन्हा रहने दो
नही याद करना मुझे किसी को..

बोलते नही हैं लफ़्ज
कहने को मज़बूर करते हैं..
करती हूँ यहॉं को दूर
ये लौटने को मज़बूर करते हैं..
जहन भी जागता हैं..
पुरानी चिट्ठियो को बाँचता हैं...
क्या करू इन चिट्ठियों का.....
यादें मत याद आ तू हमे

दर ओ दीवार को क्या पड़ी हैं..
मुश्किल तो हम पे आ पड़ी हैं
सूझता नही कोई उपाय
आप ही बताओ.....
मुझे इन यादों से बचाओ..

माना हमारा मन भावुक हैं
नही से पता आघातो को...
लेकिन प्रिय तो दे जाते हैं दर्द
कैसे सहे उन पुरानी बातों को

Sunday, October 14, 2012

ढलता हुआ सूरज



कल शाम जब ऑफीस से लौट रही थी तो ढलता हुआ सूरज सामने से दिखाई दे रहा था..वो उस समय इतना अच्छा लग रहा था की मन किया दौड़ कर उसे बाहों मे भर लू..कुछ पंक्तिया

देखा तुम्हे तो तुमपे इतना प्यार आया..
लगा भर लो आगोश मे तुमको..
दिल जैसे खुशियो से भर आया..
लग रहे थे सच तुम इतने प्यारे..
लाल रंग के वस्त्र तुमने थे धारे...
समझो देखते ही तुमको
उछल कर मेरा दिल बाहर आया..
सच तुमपे बहुत प्यार आया...
लोग कहते हैं बहुत ताप हैं तुम मे..
मुझे भी लगता हैं ..शायद जमाने भर की
गुस्सा हैं तुम्हारे मन मे..
लेकिन ये क्या..शाम होते ही तुमने..
क्या अपना रूप दिखाया..सच तुमपे
बहुत बहुत प्यार आया..लव यू...सो मच ..

My Loving Aarti Di...



हो सके तो हमे भूल जाना दी...
कभी ना करना याद..ना हमे याद आना दी..
जो दिया तुमने इतना प्यार..
कहाँ रखेंगे यार...तुम ही बताओ..
कोई गुल्लक तो दे जाना जी..
हो सके तो हमे भूल जाना दी...
नही हैं इस काबिल..जो दे सके तुम्हारा साथ
नही हैं इस लायक की बढ़ा सके तुम तक हाथ..
हमे माफ़ कर देना...जो  हमने हो तुम्हे सताया  दी..
लो देखो अब जुड़ा होने की घड़ी पास आई...
हाथ हैं मेरे दोनो खाली, नही हैं मेरे पास
सिवा आँसुओ के तुम्हे देने को विदाई..
चलो अब चलते हैं ...भगवान ने चाहा तो
फिर मिलते हैं....
इसी मे हैं शायद हमारी भलाई...

अनछुआ हैं आज भी सब..


अनछुआ हैं आज भी सब..
कुछ नही अब तक छुआ
जैसे तुम मुझे छोड़ गये थे..
अब तक वैसे ही रहा...
पूछ लो तुम दीवारो से..
खिड़कियो से..नॅज़ारो से..
नही  झपकाई मैने पलक भी..
आँखो को भी रहने दिया खुला...
सोचा आओगे तुम....ना मिला मैं तुम्हे अपनी जगह
हो जाओगे परेशान, गर मैं यहा से हिला..
यादे वादें अब भी वैसे ....सब कुछ यहाँ वैसा ही पड़ा.. .

मौत को भी मोहब्बत से निभाएँगे हम



किसी के अंधेरा करने से क्या अंधेरा होता हैं..
ज़ुल्म तो ज़ुल्म हैं कैसे सर होता हैं
आ जाएँगे उजाले घर की झिर्री से..
देखिए तो सही...सच मे बड़ा असर होता हैं..

मौत को भी मोहब्बत से निभाएँगे हम
तेरे दर पे खुशी खुशी चले आएँगे हम...

तूने जो लहराया आँचल..
बढ़ गई धड़कने हमारी..

उम्र बढ़ती गई..प्यास बढ़ती गई..
जिंदगी यारों बोझ बनती गई..

भाग्य का लिखा कौन बाचेगा दी...
वो तो पन्ना दर पन्ना खुलता जाता हैं..

सितारे की चाहत चंद्रमा मिले..
चंद्रमा की चाहत कौन पूछे..
दोनो को अपना अपना हिस्सा मिले...
यही हैं जिंदगी..

बनो तुम खूबसूरत जिंदगी का हिस्सा
अगला साल हो तुम्हारे लिए बहुत अच्छा...
जिंदगी मे आगे बढ़ते जाओ..
कभी ना याद आए अपर्णा की .....
बस आगे चलते जाओ....

परी नही चाहिए एक दुल्हन चाहिए..
जो करे मेरे  माता पिता की सेवा.....
मेरा घर महकाय....
जब आप कभी हमारे घर आए तो..
बनाकर चाय अपने हाथो से पिलाए..
दिला दो दी ...एक ऐसी लड़की..
जो हो संस्कारो मे सुशील, बिल्कुल मेरे घर सी..

दिल से करनी थी तारीफ उन्होने शब्दो मे कर दी
मैने कहा आपने क्यूँ  हक़ीक़त ही बया कर दी..

बिखर के हवा मे उस तक जो पहुच जाता हैं..
समझो मक़सद जिंदगी का वो पा जाता हैं...

किसी के अंधेरा क्या अंधेरा क्या होता हैं..
ज़ुल्म तो ज़ुल्म हैं कैसे सर होता हैं
आ जाएँगे उजाले घर की झिर्री से..
देखिए तो सही...सच मे बड़ा असर होता हैं..