Wednesday, August 29, 2012




तुमसे जुदा नहीं हैं मेरा वजूद
तुम बस गए हो..मेरी साँसों में खूब
अलग होने की मैं सोच भी नहीं सकती
ढूंढती हूँ तुम्हे अपने गर
अपने को ही ग़ुम पाती हूँ..
जीवित हो उठते हो तुम मेरे भीतर..
खुद को भूल जाती हूँ..
क्या हैं ये...जब करती हूँ समझने की कोशिश.
हज़ार तरकीबे लड़ने पे भी नहीं
समझ पाती हूँ मैं..
मान लेती हूँ इसे खुदा की नियामत तब.
और मन ही मन इतराती हूँ.. ..
(या खुदा मदद कर )

अनकहा रिश्ता



अनकहा रिश्ता आज फिर गरमाया हैं
सामने खिड़की पे आज फिर कोई आया हैं..
ऋतू हो ग्रीष्म की, या हो
सर्दियों का मौसम
जब भी आया तेरा ख़याल
उसने मुझे सताया हैं
सामने वाले बाबु जी
न भी बताये फिर भी मुझे पता हैं
आज फिर मेरा प्यार सामने आया हैं...
अनकहा रिश्ता आज फिर गरमाया हैं..



कभी शरमाती हो..
कभी इठलाती हो..
काहे बार बार हमे अपना बनाती हो..
जब बन जाते हैं हम तुम्हारे तो....
क्या खूब नखरे दिखाती हो..

रहता हैं दिल हर वक़्त ख़यालो मे तेरे
ख़यालो को पंख तुम ही लगाती हो..
जब ज़रा सा भरता हैं उड़ान दिल हमारा
आसमानो मे..तुम झट से खीच उसे..
झटका लगाती हो..
क्यूँ करती हो ऐसा बार बार
ज़रा ज़रा सी बात पे आजमाती हो..
पूरे करता हूँ वादे सारे फिर भी..रूठ जाती हो..
प्यार किया हैं तुमसे कोई गुनाह नही जालिम
जो तरह तरह से हमे मुर्गा बनाती हो..




आज तुमने फिर से
अपनी यादों को झींझोड़ा हैं
उभर आई हैं वो बातें ...
जिन्हे सीढ़ियो पे छोड़ा हैं...........
मुड़ा था पैर मेरा तब लेकिन
दर्द आज भी जैसे का तैसा...हैं
कोरा मन था हमारा तब...
आज उसपे किसी और का पहरा हैं
कब लिख दिया था तुमने ...............
अपना नाम.........पता ही ना चला...
बरामदा भी वैसा , सीढ़िया भी वैसी,
तुम भी वैसे के वैसे...
लेकिन मेरा कारवाँ कहीं दूर जा पहुचा हैं...
नही दे सकती तुम्हारा साथ अब..............
मन का घाव आज भी उतना ही गहरा हैं..
(कुछ बाते, कुछ यादें कुछ साथ बिताए पल..)



आ गई जुलाई अब हमे स्कूल जाना होगा..
जमाने भर का बोझ उठाना होगा..
लाद कर कापी किताबे..घर से जाना होगा
आएगी जो ममा पापा की याद तो
आँसू बहाना होगा.........

नही करना होगा कोई बहाना अब
क्लास मे सबसे आगे आना होगा..
करना होगा नाम रोशन पापा का अपने..
बन कर कलक्टर हमे जमाने को दिखाना होगा.


कल जब तुमने पूछा भोलेपन से
क्या कभी किसी से प्यार किया हैं
मैने बोला इतरा के...
हां मैने प्यार किया हैं..
तुमने पूछा कैसा हैं वो?

मैने कहा भोला भाला, सुंदर मतवाला,
हर दम मेरा ख़याल रखने वाला,
दिल मे सीधे उतर जाने वाला
बिल्कुल मेरे जैसा हैं वो..
तुमने झपकाई पलके, तुम्हे विश्वास ही ना हुआ..
तुम बोले कुछ और तो बताओ..
अच्छा कोई उसकी बढ़िया क्वालिटी तो बताओ
मैने कहा करता हैं प्यार मुझसे इतना
आसमान मे सितारे हो जितना
झूठ नही हैं इसमे मेरी कोई बात
ना हो विश्वास तो कर लो उस से मुलाकात
अब तुम चकराये...
तुम्हे लगा कोई तो बात हैं
जो इसके जीवन मे खास हैं
इतनी खुनकी से प्यार करती हैं..
अपने प्यार पे दिन रात दम भरती हैं
अब तुमसे रहा ना गया..तुम बोले नाम तो बताओ..
मैने कहाँ भारतीय स्त्री जिस से प्यार करती हैं
उसका नाम ज़ुबान पे नही लाती हैं
सुना हैं ऐसा करने से प्रियतम की उम्र कम हो जाती हैं
चलो तुम्हे मिलवा देती हूँ..
तुम खुद जाँच लेना..जीतने नंबर समझ मे आए दे देना
तुम झट तैय्यर हो गये..
हम चले मिलने..तुम्हे खूब घुमाया, फिराया
आख़िर तक थकाया "ले आई आईने के पास"
बोली देखो यही हैं हमारे वो लाट साब"
आइ मीन खास..अब तुम्हारा चेहरा देखने लायक था..
सच तुम्हारा लाल चेहरा देख कर मुझसे रहा नही गया..
और मैं हंस पड़ी..



क्यूँ बाँध दिया मुझे सीमा मे
कहाँ मैं तुम्हारे बिना रह सकता हूँ
तुम ना सही तुम्हारी आवाज़ तो सुन सकता हूँ.
तुम्हारे यहा से आती हवाए
आज भी मुझे मदहोश कर जाती हैं

उड़ता हैं जब तुम्हारा आँचल
सरसराहट सी यहा होती हैं..
दूर रह कर भी दूर नही होता एक पल भी
हर वक़्त तुम मे ही साँसे डूबी रहती हैं..



पेड़ ने किया अपना माजी याद
भर आई सुनकर सबकी आँख
तब से आज तक पेड़ खामोश हैं
नही सुनता कोई किस्सा अपना
उसे पता हैं तुम रो दोगे

कभी नही आओगे उसके पास
लेकर अपने माजी की याद
इसीलिए वो डरता हैं
सच हैं उसका जीवन फिर भी
अपने कॅशटो को किसी से नही कहता हैं..

बौराया भन्नाया आम आदमी




आम आदमी या
यू कहो लाचार आदमी
बेबसी से घिरा हुआ..
दुनिया की नज़रो मे बेकार आदमी
विवशता ने घेरा हैं वरना
क्यूँ होता उसके आगे अंधेरा हैं
वो भी होता काम का आदमी..
नही रहता गर आम आदमी
दबाते गये लोग, गिराते गये,
अपने पैसे से सब कुछ करते गये
रहने ना दी उसकी इज़्ज़त ओ आबरू ,
आँसुओ से रुलाते गये....
जब हार गया खुद से वो
तो भरोसा दिलाते रहे....
खून पीते रहे, खुद को बनाते रहे...
ऐसे हैं ये महान आदमी..
हमेशा से चक्की मे पिसता रहा
आम आदमी या यू कहो..
समय का गुलाम आदमी..




तुम शायद लौट आओ
वो वक़्त नही लौटेगा
सोंचना ही सोंचना है
शब्द नही लौटेंगे..........!
ये बात मन को

मालूम हैं लेकिन
बैरी हमारा मन उसे ही
हर वक़्त ढूँढे हैं..
बात बात पे रोता हैं,
अनकही को गुनता हैं
पिछली बातों को सहेजता हैं.........
सच कहा तुमने..
प्यार की बातें, बेकार की बातें
सब उसे दिल की गहराइयो से याद हैं....
दीवार से टिकाते ही सर,
सब स्पस्ट सी दीखने लगती हैं
साथ बिताया हर लम्हा ...
जिंदा हो उठता हैं..
यादो की चादर बिछा बैठ जाता हैं
करता हैं तुमसे ही ..
तुम्हारी बातें और ....रो बैठता हैं
क्या हैं ये प्यार
अब उसे समझ आया हैं
देता हैं दुख उम्र भर..
बुज़ुर्गो ने कितना सही बताया हैं





रात आज कुछ हम सी हो गई हैं
सोती नही हैं बिस्तेर पे
एक करवट मे गुजर जाती हैं
हो जाती हैं कब सुबह
आवाज़ भी नही आती हैं.....
.....




करते हो कैसी बात, 

तुमको हो दुख हम सुख मे रहे
तुम काँटों पे सोकर रात बीताओ

मुझको फूलो पे चैन मिले..
हमे मुबारक हज़ारो खुशियाँ,

तुम्हे गॅमो की शाम मिले..
कैसे जी पाएँगे हम सुखो मे, 

कुछ तो हमसे बात करो..
दुख सुख मिलकर बाँटेंगे..

साथ जियेंगे साथ मरेंगे
जीवन यू ही काटेंगे.........