Saturday, May 5, 2012

आज कल रिश्ते पैसो से जाने जाते हैं
जितना हो आदमी काम का ....
रिश्ते उतने ही गहराते जाते हैं....

जब चरखी हैं किसी और के हाथ
पतंग ही बन ना होगा .......
तोड़ दो डोर....फिर मेरी उड़ान देखना

एक दिन खुदा ने और मैने
एक दूसरे को पहचान कर
अंजान होने का नाटक किया
खुदा को पता था आएगा यही....जाएगा कहाँ..
मैने सोचा खो जाए..ढूँढ पाएगा कहाँ?

अपनो से बडो की हर बात हमे भाती हैं
क्यूंकी ये बाते ही हमे जीवन जीना सिखाती हैं

वक़्त कब ठहरा हैं............
खवाबो पे भी नींद का पहरा हैं
रात ठहर भी जाए तो क्या
मंज़र कभी रुकता नही देखा

तुम रोते हो तो हमे अच्छा नही लगता
तुम्हारे सिवा अब हमे कोई सच्चा नही लगता

Thursday, May 3, 2012

हुस्न वाले डरते नही हैं ............बंद आँखो से प्यार महसूस करते हैं...

मोहब्बत मे इल्ज़ाम तो उसपे भी आया जिसने दुनिया बनाई..तो तूने क्यूँ अपनी गर्दन बचाई

कहती हैं झाँकती आँखे तुमसे
रुक जाओ कहीं मत जाना
अभी मत जाना, कभी मत जाना


काले चश्मे पे ना जाए
अपनी अकल लगाए
चश्मे के पीछे छिपी आँखो मे
कई गहरे राज़ है....
जो अभी खुलने बाकी हैं....


घड़े मे पानी था भीग गया समूचा आकाश....
तभी आज धरती पे बारिश आई

उन आँसू मे भी प्यार था तभी तो टपक पड़े तुम्हे देखते ही....जैसे कोई अपना खड़ा हो सामने बरसो बाद...
बादल की क्या बिसात
जो डाल दे दरार
दोनो का प्रेम अमर हैं
कोई नही रोक सकता
उनके प्यार की बरसात
गवाह हैं उनके प्यार ही
हर उजली हो या काली रात

पुल टूट कर कहाँ जाएगा
नदी मे ही तो आएगा
इसलिए मैं खुश हूँ
मिलन का वक़्त करीब जो हैं..

नही थे लफ़्ज तभी तो सबसे प्यार कर पाए
होते जो दुनिया के ग्रामर, सब होते पराए
कोई होता अपना, कोई पराया
ना आती अकल कभी खुद को
अम्मा अब्बू ने जो समझाया
उसी पे चलते...गिरते पड़ते बढ़ते
सारा खेल  तो अल्फाजो का हैं...खामोशी तो बेचारी अब भी खामोश हैं

चाँद को लगा कर गले....अपना हाल सुना देना

सीढ़ी की क्या ज़रूरत चाँद को जमी पे बुला लेना
यही तो मक़सद हैं चाँद का, होश खो जाए

Wednesday, May 2, 2012

 चंदा को बुला कर साथ मे बिठा कर
हमे ना भूल जाना, उसे ही ना करते रह जाना बाते...
चंदा को मेरी भी याद दिलाना...खूब खरी खोटी भी सुनाना
कहना कहाँ थे इतने दिन ?
जो नही ली हमारी सुध, कैसे मुश्किल से कटे हमारे दिन
प्यारे चंदा तुम्हारे बिन...

हमारे सपने कितने सुन्दर हैं .........
जो माचिस की डिब्बी जैसे घरों से
निकल भागते हैं.....
चाय कप जितनी छोटी
बालकनियो से झाकते हैं....
सैर कर आते हैं आसमान की
फैलाते हैं पंख उड़ जाते हैं
नही डरते आसमान कितना असीम हैं,
कितना फैला हैं, मेरे पँखो की सीमा कितनी हैं
लौट भी पाउगा या नही
खो तो नही जाउगा...मैं
बेखौफ़, अल्मस्त, सारी परेशानी को पीछे छोड़
हँसे हुए, मज़ा लेते हुए.......
जिंदगी से भरपूर........
यही हैं असली जिंदगी का नूर...

Tuesday, May 1, 2012

पहचान लिया हैं मैने
आग, चिलमन और तुम्हे
तुम अभी तक नही बदले....
मैने तो सोचा था
जल चुके होंगे तुम्हारे
एहसास, ज़ज्बात, और
मेरे लिए बुने गये ख़यालात

दहलीज़ तक आकर तुम्हारा लौट जाना
मेरे लिए परेशानी का सबब बन जाता हैं
तेरा सलाम तो मुझ तक पहुचा...
लेकिन तू कहीं दूर छूट जाता हैं..

गॉधुलि की बेला
तुम्हारा हमको सोचना
हमे और भी रोमांचित किए जाता हैं
बहकने लगते हैं हमारे एहसास
शब्द गुड मूड कर कही खो से जाते हैं
रह जाता हैं सिर्फ़ ज़ज्बात
हम और तुम....

Sunday, April 29, 2012

ek koshish....haiku likhne ki..

दर्द से रिश्ता
अब नही रखना
जीना अकेला

प्यार का गीत
गा तू हमसफ़र
मौसम हसी...

नारी दोहन
हो कैसे संयोजन
बता तू मॅन

सद विचार
एक उम्दा औजार
दे तेज वार

चाँद के साथ
हाथ मे तेरा हाथ
वाह क्या बात

रोता यौवन
चीखता बचपन
रोता क्यूँ मॅन