Saturday, April 28, 2012


गुल्मोहर ................पता हैं तुम्हे...........
तुम मुझे कितना पसंद हो
तुम्हारे शोख रंग..........
मुझमे नई शोखिया भर देते हैं
घनी धूप मे तुम्हारा झूमना
मुझसे मेरे ही ताप को हर लेते हैं
कई बार तो सोचती हूँ.....
अपना शोख रंग
सब जगह नही बिखराउंगी
लेकिन तुम्हे देखते ही
सारे वादे जो किए थे अपने आप से
खुद ब खुद टूट जाते हैं....
जब सारे पेड़ो के पत्ते
पीले पड़ जाते हैं.....
उस खीज़ा के मौसम मे भी तुम
निरंतर मुस्कुराते हो.....
यही तो मुझे तुमसे सीखना हैं
गम हो या खुशी बस हंसते रहना हैं
मेरे अपने प्रिय...गुल्मोहर..... बिल्कुल तुम्हारी तरह...

एक टुकड़ा धूप का -

 धूप की ताक झाक
आज भी चालू हैं
सुबह से ही खोज रही हैं..
जज्बातो को...........
जो उसे छोड़ कही और
अपना डेरा जमा चुके हैं
धूप हैं कि उसे पूरा भरोसा हैं
वो कहीं नही जा सकते उसे छोड़ कर
भले ही रात उसका कितना भी साथ दे....
कितनी भी वो काली हो जाए......या फिर
दिन भी उसके साथ हो जाए.................
छिपा ले अपने आप को बदली मे आज
उसे पता हैं उसके ज़ज्बात ........
उसे छोड़ कहीं ना जाएँगे..........
आज जो हो गये हैं धूप से गुस्सा
कल गुस्सा उतरते ही ..........
दौड़े चले आएँगे.......कहाँ देख पाएँगे
उसकी कोरो मे छिपे  आँसू
सॉरी बोल गले से लिपट जाएँगे..........
करेंगे गले मे हाथ डाल गॅलबहिया
पल मे सारा गुस्सा काफूर कर जाएँगे..
दौड़ जाएगी धूप के चेहरे पे खुशी की किरण
दोनो एक बार फिर फूले नही समाएँगे...

 तुम क्यूँ बार बार
मेरे पास से चले जाते हो
क्यूँ मेरे बिरह वेदना को
और बढ़ा जाते हो..
जब भी करती हूँ बंद आँख
मन मे तुम्हे खोने का
डर समाया रहता हैं
ज़रा सा ही महसूस
करती हूँ तुमको
झट आँख खोल देती हूँ........
बार बार हाथ से छू कर
देखती हूँ तुमको
कही चले तो नही गये.......................
एक बार दिला दो पूरा विश्वास
नही छोड़ोगे हमारा हाथ....

Friday, April 27, 2012

  क्यूँ .....हर बार तुम ऐसा करते हो..
फोन नही उठाते मुझे तंग करते हो..
क्या मिलता हैं तुम्हे मेरी पलके भिगो कर
क्यूँ मेरी कोरों को गीला करते हो...
पता हैं कितने मॅन से मैने तुम्हे
फोन लगाया था..ये बताने के लिए
की मैं आ रही हूँ तुमसे मिलने...
जाओ रहनो दो...अब मैने अपना
इरादा बदल दिया हैं......
अब मैं जा रही हूँ...अपनी मम्मी के पास
जो ना जाने कितने दिनो से मेरी
बाँट जो रही हैं...उनके साथ सांझा करूगी..
अपने बचपन को...अपनी गुड़िया को.....
और उस गुड्डे को भी........
जिसने मुझे आज तक नही रुलाया...

Wednesday, April 25, 2012

खुशी से ही मर जाउंगी........


मेरी चाहत हैं कि मैं
जनम जनम तक प्यासी रहू
तुम्हारी ये चाहत, मेरी रूह को भी
सुकून मिले..
दोनो की चाहत
कैसे पूरी हो सकती हैं
क्या चाँदनी रात मे
कभी बारिश हो सकती हैं
पतझड़ मे कभी
फूल नही खिल सकते
वैसे ही अजनबी हम और तुम
कभी नही मिल सकते
हमारे और तुम्हारे
दायरे अलग अलग हैं
तुम हो आभासी दुनिया के शहज़ादे
मैं इस छोटी सी दुनिया की
कोमल सी लड़की हूँ
मैने कभी नही देखा
खुलकर आसमान..............
यही जमी पे पॅली बढ़ी हूँ
तुम दिखाते हो हमे दिन मे सपने
मुझे इनमे ना उलझाओ..........
जाओ कही दूर चले जाओ...
मुझे यू ना सताओ..
अगर रंग गई तुम्हारे रंग मे तो
तुम्हारे बिना जी ना पाउंगी.......
तुम्हे पा भी गई तो
खुशी से ही मर जाउंगी........

दिन निकल आया हैं, तारे गये हैं काम पे
चाँद चला गया हैं सोने, रात हैं आराम पे
आप भी जाग जाओ, कुछ काम करो
मस्त रहो, हँसो, और हंसाओ....



ना देंगे गर फूल गवाही तो वो बचेगा कैसे
जिसने नही किया गुनाह कभी ग़लती से भी..



बीन बजाने से मस्त हो जाता हैं नाग
बीन बजाते रहिए, नाच नाचते रहिए...


मुझे उलझा कर
तुम लौट जाओगे
केश तो संवर जाएँगे
हम बिखर जाएँगे
हमे कौन समेटेगा.....


ओह ......अब भी आँखो मे दर्द हैं
लहू ने तुम्हे जा निचोड़ा हैं....
ग़लती अकेले मेरी नही..............
तुमने भी मेरा यही हाल कर छोड़ा हैं
हम भी नही सोते, हैं दिन रात तुम्हे सोचते
किसी को सता कर क्या कोई सो सकता हैं
फिर हमारा तो साथ जन्मो का साथ हैं....
हमने कहाँ तुम्हे छोड़ा है..






तुम मुझे जितनी बार छलते हो...
मेरा विश्वास और भी बढ़ जाता हैं
मुझे लगता है ऐसा जैसे खुद
किसी का अपना आप ठगा जाता हैं...........मुझे कोई फ़र्क नही पड़ता



क्या करे बेचारा बेटी जो हैं उसके पास
यही तो उसका अनमोल धन हैं
वरना कुछ नही हैं बेचारे के पास खास



तुम तो बहुत अजीब हो..
देखते ही मेरी झुर्रिया मेरे करीब हो
बाकी लोग तो मेरे पास से भाग जाते हैं
तुम्हे क्या हुआ जो दूरिया मिटाते हो..

विचार के साथ परिपक्व हुआ हैं प्यार भी
मुझे अब हुआ हैं तुम्हारे प्यार पे नाज़ भी


संगया सर्वनाम का चक्कर छोड़े
बंद दरवाजे की कुण्डी खोले
वरना जो आया हैं वो लौट जाएगा
गर भूल से हुई आपकी पत्नि / पति
तबीयत से डाँट पिलाएगा....




मुस्कुराने मे जद्दोजहद कैसी, ये तो दिल से निकल आते हैं
यादो मे जो रहते हैं, अश्को से बाहर नही आते...


जब ढाल साथ हैं तो डरना कैसा
जब पहले ही मर गये तो मरना कैसा

 

मैं सीधी सादी अंदाज़ भी भी मेरा सादा हैं
क्या करूँ मुझे हेर फेर नही आता हैं
ये मेरे शब्द नही मेरा खुला हुआ हृदय हैं
जो आहत हैं किसी के दिल जलाने से
मैं तो पहले भी शांत थी अब भी शांत हूँ..
मेरे दिल को बस अब और ना रुलावो
ना कुरेदो मेरे जख्म, मेरे पास ना आओ

गगन टेसू की रक्तिमाभा से विभोर था-

गगन ने किया था प्यार धरती से
वो उसके ही प्यार से सराबोर था
जा रहा था मिलने अपने प्रियतम से
मॅन मे कुछ शोर था...............
घूमड़ रहे थे विचार मॅन मे तरह तरह के
कैसे मिलूँगा, क्या कहूँगा, कही शर्मा ना जाए प्रियतम मेरा
सोच सोच के परेशान हुआ जा रहा था......
बस दिल था उसका कि धाड़ धाड़ धड़के जा रहा था.........
एक तरफ़ा सोच थी उसकी......
उसे कुछ समझ नही आ रहा था.......
तभी सामने आ गई धरती उसके
जो कहना था सब गया भूल
आई इतनी शर्म उसे की...
वो टेसू की रक्तिम आभा से लाल हो गया...

क्यूँ क्या हुआ, .........वो छोड़ गया तुम्हे
क्या करता तुम्हारा जो नही था
तभी तो नही दे सका तुम्हारा साथ
बेवफा बन निकल गया.....
तुम भी मत करो याद
बुरा वक़्त था तुम्हारा
जो इतनी जल्दी गुज़र गया!!!!!!!

बेबसी, बेचैनी कितना तड़पाती हैं
जब तेरी बेपनाह याद आती हैं
यादो का कारवाँ जब ....
मेरे दिल से होकर गुज़रता हैं
तेरा एक एक लफ़्ज ..
मेरे सीने मे जा उतरता हैं
हूक़ सी उठती हैं...
दिल मे कुछ रुकता हैं

लम्हो मे गुज़रे पॅलो का ज़िक्र
तुम्हारे बिना कैसे आ सकता हैं
पैरो के छाले..जो दिए जंगल ने
उन्हे कौन सहला सकता हैं?
तूफान भी संभाल नही सकता
नन्हा सा दिया...जो मिल कर
जलाया था कभी..............
आओ तो हाथ लगाए
मिल कर दिए को बचाए.....
कुछ तुम्हारी ......
कुछ अपनी सुनाए.....
मिल कर फिर से.....
नया स्वप्न महल बनाए..

भगवान जी ये कैसा प्यार आप करते हो


भार देकर निर्भार करते हो
भगवान जी ये कैसा प्यार आप करते हो
कुछ तो सोचो रवि के बारे मे
कैसे चमकेगा सूरज गम के आँधियारे मे
आप तो रोज़ रोज़ नई मिसाल रचते हो
भगवान जी आप कैसा कमाल करते हो
चंद्रमा ने दी शीतलता
वनस्पतियो मे रस समाया हैं
सूरज को बनाया आग का गोला
कभी उसे भी तो लगाओ गले से
क्यूँ सूरज को छोड़ चाँद से प्यार करते हो
भगवान ये कैसा अन्याय करते हो
मैं हूँ ग़लती का पुतला
अब हो सर्वग्य, अविनाशी और अलबेला
मेरी बातों को अन्यथा ना लेना
मॅन मे यूँ ही तरह तरह के सवाल उभरते हैं
प्रभु आप क्यूँ ऐसे कमाल करते हो
जिस से मॅन मे ऐसे ख़याल उठते हो


दूर से ही सही


किया हैं वादा तो ज़रूर आएँगे
ज़रा सी भी नही देर लगाएँगे
तुम मत करना मेरा इंतेज़ार
हम तो मुसाफिर हैं लौट ही आएँगे
एकाकीपन को दे देना मेरा रूप
कुछ मेरी तस्वीरे बना लेना
मेरे सब समान को ठीक से लगा देना
याद भी नही आएगी मेरी
करीब भी रहूँगा तुम्हारे....बस दूर से ही सही

Tuesday, April 24, 2012

प्यार को पानी के छीटें दे.....
जिंदा करे जैसे करते हैं सब्जियाँ ताज़ी
आँसुओं को बाड़ लगाकर रोक डाले
खवाबो पे नज़र रखे, बाहर ना निकाले
पीले पड़े खत की फोटोकॉपी करके नया कर डाले..
जिंदगी गुलज़ार हो जाएगी, खोई हसीना लौट आएगी..

Sunday, April 22, 2012


मत डरो स्वप्न......................
तुम्हे छोड़ कर .........वो कहाँ जाएगा?
गर ग़लती से चला भी गया तो तेरे जैसा
प्यार करने वाला कहाँ से लाएगा
सारी दुनिया घूम कर....ठौर यही पाएगा....
मत डरो स्वप्न, वो यही आएगा..
तुम्हे छोड़ कर वो कहाँ जाएगा

बेबसी, बेचैनी कितना तड़पाती हैं
जब तेरी बेपनाह याद आती हैं
यादो का कारवाँ जब ....
मेरे दिल से होकर गुज़रता हैं
तेरा एक एक लफ़्ज ..
मेरे सीने मे जा उतरता हैं
हूक़ सी उठती हैं...
दिल मे कुछ रुकता हैं