Saturday, February 4, 2012

समय की ज़ंज़ीरो मे...

तुम चुप रहे
मैं तुम्हारे बोलने का
इंतज़ार करती रही
मैं कई बार रूठी तुमसे
तुम्हारे मनुहार का
इंतज़ार करती रही
हर बार मेरा इंतज़ार रहा बेकार
ऐसी कौन सी हिचकिचाहट थी
जो नहीं स्वीकार कर
पा  रहा था हमारा प्यार
तुम्हारी खामोशी ने
हमे दूर किया हैं
खो देने को मज़बूर किया हैं..
लेकिन खोकर मेरे पास
आए भी तो क्या?
मैं भी अब मज़बूर हूँ
समय की ज़ंज़ीरो मे...

Friday, February 3, 2012

तुम्हारा प्रेम झर उठता हैं


जुदाई मे विरह का संवाद
तुम ही सुन पाते हो
मैं तो निर्झर झरने जैसी
बह जाती हूँ.....तुम्हारे साथ
नही रोक पाती अपने आँसुओ को
बादल बन सब घूमड़ कर
चेहरे पे आ टिकता हैं
लोग चेहरे देख सब तय कर
लिया करते हैं...........
कैसे जीती हूँ तुम बिन
विरहन तक कह देते हैं
तुम्हारे साथ जिया एक
लम्हा प्रेम का............
जिसमे गुम हैं मेरा वज़ूद
आँखो के सामने आ
मचलता हैं
तब रोता नही हैं इश्क़
तुम्हारा प्रेम झर उठता हैं