Sunday, December 9, 2012

कहीं तुम ना निकल आओ..


सलीका सीखने मे गुजर गई उमर..
लेकिन तब भी सलीके से पीना ना आया..

दोनो ही बातों से ठगा गया मैं..
किसी ने वक़्त गुज़ारने के लिए, अपना बनाया मुझे, 
और किसी ने अपना बनाकर, वक़्त गुज़ार लिया ।

सलीका भूलने को ही तो उठाया था पैमाना
वरना तो सब याद था मुझे..

भूल गये सब कुछ, पैमाना याद रहा..
क्यूँ बनाया था अपना उसे..जो भूल जाना याद रहा

उसने सीखा था अपने अनुभव की किताब से तुम्हे पढ़ना..
तुम स्कूल जा के भी ना सीख सके चेहरा पढ़ना..

आज को कहीं दूर छोड़ आए हैं..
ये क्या आप तो कल को (भूत) अपने साथ ले आए हैं..

दिल तो कर दिया किसी और के हवाले...
अब क्यूँ फ़िकरमंद हुआ जाता हैं..
जिसको दिया हैं वो ही संभालेगा..
तू क्यूँ बेचैन हुआ जाता हैं..

खो गये जो आप तो..कहाँ हम पाएँगे...
बताकर कहीं और का..आप उनके पास ही जाएँगे..

भीगी जो पलके तो...ढूलक आए आँसू..
झट से पोंछ लिया डर के उसने..कहीं तुम ना निकल आओ..

अभी ना जाओ छोड़ कर, दिल अभी भरा नही....
जा रहे थे वो .....हमने ये कह कर उन्हे रोक लिया..

आपकी आँखो मे कुछ महके हुए से खवाब हैं
आप से भी खूबसूरत आपके अलफाज़ हैं......

दे तो दे उसे तोहफे मे आईना...लेकिन तुम खूबसूरत हो..ये कौन बताएगा...आईना बोल नही सकता ना..



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