Thursday, November 29, 2012

प्यार की परिणति






सर्दियो की सुबह
खिड़की जो खोली यादों की
ठंडे झोके की तरह
तुम आ गये घर के भीतर
हाथ मे उठाया जो कही का प्याला
सारी यादें भी गरमा गई..
याद आ गया तुम्हारे साथ बिताया 
हर लम्हा..
जो आज भी आँखो मे ज्यूँ का त्यु हैं..
हम करते थे हर वो बात.......
जो नही बाँट सकते दुनिया मे किसी के भी साथ 
होता था जब हाथो मे हाथ..पहरो बैठे रहते थे ..
तुम्हारी कही हर बात 
आज भी अंकित हैं ....
मेरे मानस पटल पे..
तुम ही थे मेरे जीवन की वरीयता...
हमेशा हमेशा...वक़्त ने हमे मिलने ही नही दिया ..
तो क्या..आज भी तुम जिंदा हो..
मेरी यादों मे...सांसो मे..मेरे हर एक वादों मे....
मत समझना मैने तुम्हे जाने दिया...
खुद से जुदा कर दिया...सुना हैं..
प्यार कभी मरता नही....अमर हो जाता हैं....
गति पा जाता हैं ..रूह को सुकून दे जाता हैं.
हमारे प्यार की परिणति भी ऐसी ही हैं....

2 Comments:

At December 3, 2012 at 2:29 AM , Blogger Madan Mohan Saxena said...

बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

 
At December 3, 2012 at 2:35 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

Shukriya madan ji..

 

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