Monday, October 22, 2012

तेरी मेरी बात ऐसे..
जैसे बरसात मे उफनती नदी...
नही रहती होश मे अपने...
बह जाती हैं कहीं भी..

तेरी ही याद से जिंदा हूँ...
ना रहा मुझमे कुछ बाकी...
अपनी बात पे शर्मिंदा हूँ...
अब नही दूँगी कोई मौका तुमने..
नाखुश रहने का...
जा रही हूँ दूर तुम्हारी दुनिया से..
रहना खुश मेरे यार....मत करना अब मुझे तुम प्यार..


दिल जो अगर भर गया हो..
तो किसी को क्या कहे..
कैसे बुने खवाब....कैसे ख़ुशगवार मंज़रचुने...
नही रहना अब दुनिया मे...
चलो कहीं तन्हा रहे..


देखे जो खवाब
सब किर्चि किर्चि बिखर गये..
रहना था साथ उनके
देखो वो अलग गये...
अब कोई मंज़र, 
ना मंज़िल का निशा...
जाना था कहाँ...
हम देखो किधर गये..


कैसे भूले हमको वो..
हमने प्यार सिखाया हैं
हमारे प्यार को ही तो उन्होने
दुनिया मे जा कर बढ़ाया हैं
करते हैं मेरी बातें...
हमको कब भुलाया हैं..
देते हैं खुद को धोखा...
 हम पे भी आजमाया हैं..





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