Thursday, May 10, 2012

छल


तुम्हारी आदत आज भी वैसी की वैसी हैं,
ना तुम बदले ना हम
तुम छलते रहे उम्र भर हमे,
हम देते रहे तुम्हे प्रोत्साहन
कैसा था तुम्हारा प्यार,
लहर की तरह हर बार पलट जाता था
जैसे नही आती वो लौट कर कभी,
तुम्हे भी नही आना था
मैं ही करती रही तुमपे उम्र भर विश्वास,
तुम्हे नही आना था नही आए...
ना जाने कैसे कर पाते हो ये सब
सता कर चैन से सो लेते हो अब तक
मुझे तो पता हैं नही आओगे लौट कर
तब भी दीप जला रखे हैं राहों मे
फूल सुवासित कर रखे हैं.....
शायद ये गंध तुम्हे खीच लाए....
पुरानी यादे तुम्हे तडपाए
गर तुम तब भी नही आए...
तो करूँगी प्रार्थना ईश्वर से
राह मे ईश्वर कभी मुझको
तुमसे ना मिलवाए..........
गर मिल भी जाओ तुम तो
मेरी आँखे धोखा खाए.....
तुम्हे कभी ना पहचान पाए...
मेरे लिए तुम्हारी यादश्त भी
कभी काम ना आए............
निर्मोही तू मुझसे इतना दूर
चला जाए............

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