Thursday, January 19, 2012

मौसम के ढंग निराले हैं
चाचा ने कह डाले हैं
भुवन भास्कर जब हैं आते
मेरे चाचू परेशन हो जाते
ओढ़ रज़ाई सो जाते हैं
जाड़ा बहुत सतावे हैं


होली के आते ही चाचा
हो जाते मतवाले हैं
चाची संग खेले होली
बच्चो को डाट पिलावे हैं
मौसम के रंग निराले हैं

 
सावन का महीना
चाचा जी को बीमार कर देता हैं
चाची चली जाती हैं मायके
चाचा का ख़याल कोई ना रखता हैं
तब चाचा जी ने नये खेल निकाले हैं
ताश और शतरंज से
अपना दिल बहला डाले हैं
मौसम के हैं ढंग निराले।।










4 Comments:

At January 19, 2012 at 9:35 PM , Blogger Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही बढ़िया।


सादर
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जो मेरा मन कहे पर आपका स्वागत है

 
At January 19, 2012 at 9:45 PM , Blogger अपर्णा खरे said...

dhanyawaad Yashwant ji...

 
At February 4, 2012 at 7:44 PM , Blogger मेरा मन पंछी सा said...

bahut sundar rachana hai

 
At February 4, 2012 at 11:10 PM , Blogger अपर्णा खरे said...

thanks Reena Ji..

 

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