Saturday, December 3, 2011

कब कोई किसे अपनाता हैं
जब ना हो दुनिया मे कोई अपना
तो हर वक़्त बस गुरु याद आता हैं
कब किस उदाहरण से
हमे वो शिक्षा दे जाता हैं
ये बहुत देर बाद मे समझ आता हैं
पथ प्रदर्शक को ही कहते हैं गुरु
तुम हमे पथ दिखाते रहे
अंधेरे मे हमे ज्ञान का रास्ता सुझाते रहे
जब भी हुई हमसे कोई भी ग़लती
प्यार और डाँट दोनो पिलाते रहे
तराशा ऐसा अनगड पत्थर को
कुशल कारीगर की तरह
की खूबसूरत मूर्तिया बनाते रहे
कौन हैं वो पहचानो तो..
तुम तुम तुम






डूबे इसलिए कि भरोसा कश्‍ती पर किया...
नदी पर भरोसा होता तो कुछ और बात होती..


होता भरोसा गर नदी पर तो
कश्ती की क्या ज़रूरत थी
पार हो जाते यू ही
पकड़ कर बाह साहिल की
किनारा भी मिल जाता
सहारा भी मिल जाता
रहते सूखे सूखे इस छोर से
उस छोर तक भी


पकड़ी हैं जो बाह कश्ती की
तो फिर वही करना
कहे कश्ती तुम्हे गर तो तुम
डूब भी मरना...
बचाने कोई ना आएगा
हाँ साहिल ज़रूर चिल्लाएगा
ये कर दिया तुमने
क्यूँ फेर ली नज़रे तुमने
वो तब भी तुम्हारा था
वो अब भी तुम्हारा हैं


बांह पसारे खड़ा था आकाश...
रह रह उथल रहा था सागर...
नि:शब्‍द बोलती ज़मीन पर
हम चल रहे थे साथ-साथ.......
तुमने पूछा मुझसे कि आखिर क्‍या चाहता हूं मैं.....
मैं क्‍या कहता.....मैं क्‍यों कहता.....
जब बांह पसारे खड़ा था आकाश....
रह रह उथल रहा था सागर....
निशब्‍द बोलती ज़मीन पर हम चल रहे थे....साथ-साथ...

क्या तुम्हारे ना बोलने से
सब ठीक हो जाना था
लहरो का चलना थम जाना था
नही मेरे दोस्त सफ़र को
अभी आगे तक ले जाना था
एक साथ चलने से कुछ नही होता हैं
मन को भी मिलाना पड़ता हैं
अनकहे को भी अपनाना पड़ता हैं
गर साथ चल कर एक बार फिर से
होता आसान अजनबी होना
तो हम क्या सारी दुनिया हमारे जैसी होती..
क्यूँ होते गम, दूरी और बेबसी..
इतनी आसान नही हैं जिंदगी
जितना तुम समझते हो...
बाहें पसारे आकाश के चक्कर मे
अपनी जिंदगी से क्यूँ लड़ते हो..

Friday, December 2, 2011


क्या देखा तुमने वहाँ
जो यहाँ नही देख पाए थे 
बेशक अजीब थी वो जगह
लेकिन अंजान ना थी
तुम आ चुके थे पहले
तुमने महसूस भी किया था 
उस खुश्बू को.............
वो तुम्हारा अपना घर था
जो बरसो पहले तुमसे छूट गया था
और अब तुम उसे समूचा भूल चुके थे
आज तुम्हे याद आया हैं............
चलो सुबह का भूला 
शाम को लौट आया हैं..


वो जो सब वहा था 
पहले भी कही देखा था 
अजीब था वो सब उस अनजान जगह 
जहा मैं आया पहली बार 
मगर लगा यू जैसे मैं वही था वही का हूँ 
और जब से लौटा हूँ अपनी परिचित जगह
जहा सब मेरा अपना था अपरिचित अनजाना सा लगा
बार बार लग लौट जाऊ उसी जगह
जो अनजान है मगर अपनी सी लगती है





मैं ठहरी रही .....
तुम बह गए किनारे की रेत की तरह .....
यादों के लम्हे यही ठहर गए साथ मेरे चट्टान की तरह ....


तुम क्या गये मेरा सब कुछ ले गये
चैन, सुकून, नींद और ना जाने क्या क्या
रह गई तो बस तुम्हारी बातें, यादें और मुलाक़ाते
जिन्हे याद करके अब मैं जीती हूँ
तुम्हारे ख़यालो के संग ही मरती हूँ
गर लगे मेरा प्यार सच्चा हैं 
लौट कर तुम आना
या संग मुझको भी ले जाना
मुझे इंतेज़ार हैं अब तक
की तुमसे प्यार हैं अब तक

Thursday, December 1, 2011


सिक्‍के को पलट कर तुमने कहा..
इसका दूसरा पहलू भी तो देखो....देखा.......
कितना कुछ उलट-पलट गया इसके बाद.....


तुमने मेरी बात मानी अच्छा किया
वरना एक पहलू और हमारी जिंदगी का अहम फ़ैसला
सब हमारे हाथो से छूट जाते
क्या दिखाई दिया तुम्हे वो सच
जो मैं नही महसूस करा सकी तुम्हे बरसो मे
एक सिक्के ने समझा दिया.....
चलो हमारे प्यार मे एक नया मोड़ आ गया...

Wednesday, November 30, 2011


चढ़-चढ़कर आती रही...
वह लहर थी...
जो खामोश लौटता रहा वह समुद्र था....
किनारे पर खड़े होकर
पलायन के तुम्‍हारे आरोप पर
मैं हंसूं नहीं तो क्‍या करुं.....




लहर ने नही छोड़ा मुझे चाहना
मैं ही समुंद्र बन उन्हे लौटाता रहा
थी मेरी भी अपनी मज़बूरी
तुम्हे पलायन समझ आता रहा
चलो आरोप ही सह से लेते हैं 
कुछ मुख से नही कहते हैं
जब समझ आए तुम्हे मेरी मज़बूरी
तो बिन बुलाए आ जाना
द्वार खुला हैं तुम्हारे लिए
इसे अपना ही घर समझ लेना....

तुम

(1)
तुम क्या हो मेरे लिए
ये मैने तब जाना
जब तुमको देखा, तुमको समझा 
तुमको पाया...... साथ ही साथ 
कई बार आजमाया.....
हर बुरे वक़्त मे मैने तुम्हे
अपने साथ पाया तब जाकर मन
तुम पर पूरा भरोसा कर पाया
लगे कभी पिता से
जब तुमने मुझे प्यार से थपथपाया
दी मेरी उपलब्धि पे शाबाशी
खुशी से गले लगाया.....
मेरी भी भर आई आँखे
जब प्यार तुम्हारा पाया

मेरी आने वाली पुस्तक "कुछ यादें...कुछ बातें..कुछ साथ बिताए पल.....जो ना अब हमारे हैं" का कुछ अंश




तुम्हे याद हैं हमे मिले पूरे एक साल हो गये हैं २२ नवेंबर२०१० को हम पहली बार मिले थे जब हम मिले थे तो मैं तो राज़ी भी नही थी तुमसे दोस्ती के लिए लेकिन ना जाने कैसे तुमने मुझे राज़ी कर लिया अपनी जादू भारी बातों से और मैं तुम्हारे सम्मोहन मे खिचती चली गई ग़ज़ब का सेन्स ऑफ ह्यूमर हैं तुम्हारा कैसे मेरी सारी सीरियस बातों को भी तुम अपने हास्य का पुट दे दिया करते थे और मैं बस चिल्ला के रह जाती थी...धीरे धीरे  तुमने मेरे पूरे मन, दिल दिमाग़ सब पे अपना क़ब्ज़ा जमा लिया और मैं भी हर समय बस तुम्हारी बातों मे ही खोई रहने लगी..और समय अपनी रफ़्तार से दौड़ने लगा मुझे याद हैं कैसे तुमने मेरे जनम दिन को यादगार बना दिया था सच ऐसा जनम दिन तो मैसे आज तक नही मनाया इतनी दूर होकर भी तुम मेरे पास थे बिल्कुल धड़कनो की तरह धड़क रहे थे मेरे दिल मे...मुझे मेरी हर धड़कन साफ सुनाई दे रही थी... हम दिन भर बाते करते फिर भी हमारी बाते ख़तम ना होती...तुमने तो मुझे एक नई दुनिया मे पहुचा दिया था सच...मुझे लग रहा था मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नही रह पाउगी आज भी मेरा दिल तुम्हारे पास ही हैं तुम्हारी बाते, मेल्स मुझे सहज ही तुम्हारे करीब ले आते थे जबकि मैं डरती थी समाज से, दुनिया से और अपने आप से की कहीं हमारे प्यार को हमारी ही नज़र ना लग जाए और वोही हुआ ...अचानक ना जाने क्या हुआ तुम मुझसे दूर जाने लगे  अब तुम्हारे फोन कॉल्स बंद हो गये, ई मेल्स भी कहीं खोने लगे और ऑनलाइन आना तो तुमने बंद ही कर दिया और जब मैं कॉल करती तो कहते मैं बिज़ी हूँ या मीटिंग मे हूँ (डॅडी का फोन आ रहा हैं) कहकर बात नही करते थे मुझे आज तक समझ नही आया की मेरी ग़लती क्या हैं....मैने अपने आपको तुम्हारी यादों मे डूबा लिया और पहले तो शिकायत भी करती थी फिर वो भी बंद कर दिया....किस से करती शिकायत...और कौन सुनता मेरी शिकायत....जब तुम ही मेरे पास नही थे...


तुम्हारे पास भी लाखो उलझने थी काम का प्रेशर था प्लस एक जबरदस्त धोखा भी था तुम्हारी लाइफ का जो तुम अकेले सफर कर रहे थे मैं समझ रही थी इसलिए अपने आप को मैने समय पे छोड़ दिया....की जब याद आएगी या कमी लगेगी तो लौट आओगे तुम मुझे अपने सच्चे प्यार पे पूरा भरोसा था और अब भी हैं अब जाने क्यूँ लग रहा हैं तुम मेरे पास लौट आओगे...क्यूंकी समय ने तुम्हारी बहुत सी उलझने सुलझा दी हैं और जो बाकी हैं उसे हम मिलकर सुलझा लेंगे...मेरा विश्वास पक्का हैं आ रहे हो ना तुम..

Tuesday, November 29, 2011


तुम्हे पता हैं मेरे इर्द गिर्द 
वाकये घूमा करते हैं
कभी रिक्शेवाले के रूप मे,
कभी दूधवाले के रूप मे
कभी मज़बूरी के रूप मे 
कभी एक्सीडेंट के रूप मे 
ये सब यहीं.... मेरे आस पास
अभी कल की ही बात हैं 
एक बच्चे के पास बैठी थी
होगा यही कोई 7-8 साल का, 
क्लास टू मे पढ़ता था
बेचारा होम वर्क से घबरा रहा था
पढ़ाई को बोझ बता रहा था
नन्ही सी जान बेचारा रोता जा रहा था, 
साथ ही साथ होम वर्क निपटा रहा था .....
बहुत तरस आया लेकिन कैसे रोकती?
वो ही तो हमारा भविष्य हैं 
बहुत समझाया बताया 
तुम्हे वैज्ञानिक बनना हैं..
देश को आगे बढ़ाना हैं.........
वो बोला आंटी आप क्यूँ 
नही बनी वैज्ञानिक??
अब क्या बताती, 
घर मे साधन सीमित था
पिता के पास और भी ज़िम्मेदारी थी,
कैसे बनाते वो मुझे वैज्ञानिक?? 
कभी कभी बच्चे अपने भोले प्रश्नो से 
हमे हिला सा देते हैं..अंजाने मे वो 
हमारे भीतर की कमजोर नसो को 
दबा दिया करते हैं, उन बेचारो को क्या पता
अपनी इच्छा को कितना दबाना पड़ता हैं
ना हो पैसे तो पेट दबा कर सोना पड़ता हैं
खैर ऐसी नौबत तो कभी नही आई
लेकिन फिर भी इच्छा होते हुए भी 
पैसो के कारण डॉक्टर नही बन पाई
ये दुख हमेशा सालता रहेगा   
ऐसे ही ना जाने कितने वाकये हैं
जो जेहन मे घूमा करते हैं
कभी फ़ुर्सत से बताएँगे
आज के लिए इतना ही काफ़ी हैं