Friday, August 26, 2011

मत सो अपने ख़यालो के साथ


मत सो अपने ख़यालो के साथ
ख़यालो को पंख दो
उन्हे खुला आकाश दो 
देखो कैसे सैर करेंगे ये 
साथ मे दो चार परिंदो को भी 
मित्र बना लाएँगे.....
सजेगी खूब महफ़िल
नये रंग छाएँगे....
आशंकाओ के बादल 
भी वर्षा मे बदल जाएँगे
खुला गगन, गाता हुआ मन
कितना मधुर संगीत होगा
बीते समय और बंद मुट्ठी को खोल दो
मत हो खुद से नाराज़, हालात से खफा
ईश्वर की मर्ज़ी पे सब छोड़ दो...
बुरा वक़्त भी गुज़र जाएगा...

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