Thursday, July 21, 2011

तेरी तरसती निगाहे



तेरी तरसती निगाहे 
गर खोजती हैं मुझे
तो मुझ तक पहुचती
क्यूँ नही....
क्यूँ करती हैं देर आने मे....
मैं तो अब भी उसी मोड़ पे हूँ 
जहाँ छोड़ा था तुमने मुझे..
प्यार का जो नन्हा बीरवा 
रोपा था जो धीरे से मेरे मॅन मे
फूल कर बहुत बड़ा हो चला हैं
दुपट्टे का कोना भी साडी की
लंबी चीर मे बदल चुका हैं
चाँद भी हैं..तारे भी हैं...
हमारे प्यार के गवाह..
ये सितारे भी हैं..........
बस तुम नही हो...
गर्म एहसास तुम्हारा
आज भी मुझे..जलाता हैं...............
तेरे यही कहीं आस पास ..............
होने को दर्शाता हैं.......................
निकल जाए ना वक़्त हाथों से....
डोर ना टूट जाए अपनी सांसो की
कह रही हैं तुम्हारी नर्म साँसे तुमसे...
एक बार चले आओ.................
अब उम्र के आख़िरी पड़ाव पे
खड़ी हूँ...यू ना तड़पाव...
मौत भी आ जाएगी चैन से..
देख लूँगी तुमको गर जी भर के..

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