Friday, June 24, 2011

कैसी है ये रेलमपेल..


कैसी है ये रेलमपेल..
खेल रहे सब कैसा खेल.
कितनी महगी सब्जी है..
कितना महगा दूध दही..
ग़रीब बेचारा कैसे खाए..
मुह को ढके चुपचाप सो जाए..
सरकार हुई है एकदम  फेल.
कैसी है ये  रेलमपेल. ..
सोना पहुचा आसमान मे..
चाँदी जैसे चंदा..
चंद पैसो से काम चले ना
कुछ भी नही है मंदा..
निकल रहा है सबका तैल..
प्रभु करो कुछ अपना खेल..
कैसी है ये  रेलमपेल..
सोना समझो गेहू (दालो) को..
 चावल  को समझो चाँदी..
सोच समाज के खर्च करो तुम..
करो ना कुछ बर्बादी..
तभी होगा महगाई से मेल..
तभी मितेगी  रेलमपेल...
हम भी खेले ऐसा खेल..
मिट जाए ये  रेलमपेल...


0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home